अग्नि पथ Important Questions || Class 9 Hindi (Sparsh) Chapter 12 in Hindi ||

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पाठ – 12

अग्नि पथ

In this post we have mentioned all the important questions of class 9 Hindi (Sparsh) chapter 12 अग्नि पथ in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 9 के हिंदी (स्पर्श) के पाठ 12 अग्नि पथ  के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
Subjectहिंदी (स्पर्श)
Chapter no.Chapter 12
Chapter Nameअग्नि पथ
CategoryClass 9 Hindi (Sparsh) Important Questions
MediumHindi
Class 9 Hindi (Sparsh) Chapter 12 अग्नि पथ Important Questions

Chapter 12 अग्नि पथ

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कवि ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है?

उत्तर- कवि ने ‘अग्नि पथ’ जीवन के कठिनाई भरे रास्ते के लिए प्रयुक्त किया है। कवि का मानना है कि जीवन में पग-पग पर संकट हैं, चुनौतियाँ हैं और कष्ट हैं। इस प्रकार यह जीवन संघर्षपूर्ण है।

(ख) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर- “माँग मत’, ‘कर शपथ’ तथा ‘लथपथ’ शब्दों का बार-बार प्रयोग करके कवि मनुष्य को कष्ट सहने के लिए तैयार करना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य आँसू, पसीने और खून से लथपथ’ होने पर भी राहत और सुविधा न माँगे। वह कष्टों को रौंदता हुआ आगे बढ़ता जाए और संघर्ष करने की शपथ ले।

(ग) “एक पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय है-मनुष्य जीवन के कष्ट भरे रास्तों पर चलते हुए थोड़ा-सा भी आराम या सुविधा न माँगे। वह निरंतर कष्टों से जूझता रहे।

प्रश्न 2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) तू न थमेगा कभी

तू न मुड़ेगा कभी

उत्तर- इन पंक्तियों का भाव यह है कि हे मनुष्य! जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार मानकर कभी रुकेगा नहीं और संघर्ष से मुँह मोड़कर तू कभी वापस नहीं लौटेगा बस आगे ही बढ़ता जाएगा।

(ख) चल रहा मनुष्य है।

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, पथपथ

उत्तर- कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 3. इस कविता को मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- इस कविता का मूलभाव है-निरंतर संघर्ष करते हुए जियो। कवि जीवन को आग-भरा पथ मानता है। इसमें पग-पग पर चुनौतियाँ और कष्ट हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह इन चुनौतियों से न घबराए। न ही इनसे मुँह मोड़े। बल्कि वह आँसू पीकर, पसीना बहाकर तथा खून से लथपथ होकर भी निरंतर संघर्ष करता रहे।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि ‘एक पत्र छाँह’ भी माँगने से मना करता है, ऐसा क्यों?

उत्तर- कवि एक पत्र छाँह भी माँगने से इसिलए मना करता है, क्योंकि संघर्षरत व्यक्ति को जब एक बार रास्ते में सुख मिलता है, तब उसका ध्यान संघर्ष के मार्ग से हट जाता है। ऐसा व्यक्ति संघर्ष से विमुख होकर सुखों का आदी बनकर रह जाता है।

प्रश्न 2. कवि किस दृश्य को महान बता रहा है, और क्यों?

उत्तर- जीवन पथ पर बहुत-सी परेशानियाँ और कठिनाइयाँ हैं, जो मनुष्य को आगे बढ़ने से रोकती हैं। मनुष्य इन कठिनाइयों से संघर्ष कर आगे बढ़ते जा रहे हैं। कवि को यह दृश्य महान लग रहा है। इसका कारण है कि संघर्ष करते लोग आँसू, पसीने और रक्त से तर हैं, फिर भी वे हार माने बिना आगे बढ़ते जा रहे हैं।

प्रश्न 3. कवि मनुष्य से किस बात की शपथ लेने को कह रहा है?

उत्तर- कवि जानता है कि जीवनपथ दुख और कठिनाइयों से भरा है। व्यक्ति इन कठिनाइयों से जूझते हुए थक जाता है। वह निराश होकर संघर्ष करना बंद कर देता है। अधिक निराश होने पर वह आगे बढ़ने का विचार त्यागकर वापस लौटना चाहता है। कवि संघर्ष करते लोगों से कभी न थकने, कभी न रुकने और कभी वापस न लौटने की शपथ को कह रहा है।

प्रश्न 4. ‘अग्नि पथ’ कविता को आप अपने जीवन के लिए कितनी उपयोगी मानते हैं?

उत्तर- मैं ‘अग्नि पथ’ कविता को जीवन के लिए बहुत जरूरी एवं उपयोगी मानता हूँ। इस कविता के माध्यम से हमें कठिनाइयों से घबराए बिना उनसे संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। जीवन पथ पर निरंतर चलते हुए कभी न थकने, थककर निराश होकर न रुकने तथा निरंतर आगे बढ़ने की सीख मिलती है, जो सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है।

प्रश्न 5. कवि मनुष्य से क्या अपेक्षा करता है? ‘अग्नि पथ’ कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर- कवि मनुष्य से यह अपेक्षा करता है कि वह अपना लक्ष्य पाने के लिए सतत प्रयास करे और लक्ष्य पाए बिना रुकने का नाम न ले। लक्ष्य के पथ पर चलते हुए वह न थके और न रुके। इस पथ पर वह छाया या अन्य आरामदायी वस्तुओं की उपेक्षा करे तथा विघ्न-बाधाओं को देखकर साहस न खोए।

प्रश्न 6. ‘अग्नि पथ’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- मानव को जीवन पथ पर चलते हुए अनेक विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। मनुष्य की राह में अनेक अवरोध उसका रास्ता रोकते हैं जिनसे संघर्ष करते हुए, अदम्य साहस बनाए रखते हुए मनुष्य को अपनी मंजिल की ओर बढ़ना पड़ता है। संघर्ष भरे इसी जीवन को अग्नि पथ कहा गया है।

प्रश्न 7. ‘अग्नि पथ’ कविता में निहित संदेश अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अग्नि पथ कविता में निहित संदेश यह है कि मनुष्य को जीवन पथ पर निरंतर बढ़ते रहना चाहिए। इस जीवन पथ पर जहाँ भी विघ्न-बाधाएँ आती हैं, मनुष्य को उनसे हार नहीं माननी चाहिए। उसे थककर हार नहीं माननी चाहिए और लक्ष्य पाए बिना न रुकने की शपथ लेनी चाहिए।

प्रश्न 8. जीवन पथ पर चलते मनुष्य के कदम यदि रुक जाते है तो उसे क्या हानि हानि उठानी पड़ती है?

उत्तर- जीवन पथ पर चलता मनुष्य यदि राह की कठिनाइयों के सामने समर्पण कर देता है या थोड़ी-सी छाया देखकर आराम करने लगता है और लक्ष्य के प्रति उदासीन हो जाता है तो मनुष्य सफलता से वंचित हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की जीवन यात्रा अधूरी रह जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. अग्नि पथ’ कविता थके-हारे निराश मन को उत्साह एवं प्रेरणा से भर देती है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- मनुष्य का जीवन संघर्षों से भरा है। उसके जीवन पथ को कठिनाइयाँ एवं विघ्न-बाधाएँ और भी कठिन बना देते हैं। मनुष्य इनसे संघर्ष करते-करते थककर निराश हो जाता है। ऐसे थके-हारे और निराश मन को प्रेरणा और नई ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह कविता मनुष्य को संघर्ष करने की प्रेरणा ही नहीं देती है, वरन् जीवन पथ में मिलने वाली छाया देखकर न रुकने, सुख की कामना न करने तथा कठिनाइयों से हार न मानने का संदेश देती है। इसके अलावा इस कविता से हमें पसीने से लथपथ होने पर भी बढ़ते जाने के लिए प्रेरणा मिलती है। इससे स्पष्ट है कि अग्नि पथ कविता थके-हारे मन को उत्साह एवं प्रेरणा से भर देती है।

प्रश्न 2. एक पत्र छाँह भी माँग मत’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर- ‘एक पत्र छाँह’ अर्थात् एक पत्ते की छाया जीवन पथ पर संघर्षपूर्वक बढ़ रहे व्यक्ति के पथ में आने वाले कुछ सुखमय पल है। इनका सहारा पाकर मनुष्य कुछ देर और आराम करने का मन बना लेता है। इससे वह गतिहीन हो जाता है। यह गतिहीनता उसकी सफलता प्राप्ति के लिए बाधक सिद्ध हो जाती है। इस गतिहीन अवस्था से उठकर पसीने से लथपथ होकर संघर्ष करना, कठिनाइयों से जूझना कठिन हो जाता है। इससे व्यक्ति सफलता से दूर होता जाता है। इसलिए कवि एक पत्र छाँह भी माँगने से मना करता है।

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हमें उम्मीद है कि कक्षा 9 हिंदी (स्पर्श) अध्याय 12 अग्नि पथ हिंदी के महत्वपूर्ण प्रश्नों ने आपकी मदद की। यदि आपके पास कक्षा 9 हिंदी (स्पर्श) अध्याय 12 अग्नि पथ के महत्वपूर्ण प्रश्नो या कक्षा 9 के किसी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न, नोट्स, वस्तुनिष्ठ प्रश्न, क्विज़, या पिछले वर्ष के प्रश्नपत्रों के बारे में कोई सवाल है तो आप हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं या नीचे comment कर सकते हैं। 


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