श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 18 in Hindi ||

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पाठ – 18

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज 

In this post we have mentioned all the important questions of class 12 Hindi (Aroh) chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 12 के हिंदी (आरोह) के पाठ 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
Subjectहिंदी (आरोह)
Chapter no.Chapter 18
Chapter Nameश्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज
CategoryClass 12 Hindi (Aroh) Important Questions
MediumHindi
Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Questions

Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

पाठ के साथ

प्रश्न 1. जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं? 

उत्तर: ति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं –

  • जाति-प्रथा, श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन भी करती है।
  • सभ्य समाज में श्रम-विभाजन आवश्यक है, परंतु श्रमिकों के विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन किसी अन्य देश में नहीं है।
  • भारत की जाति-प्रथा में श्रम-विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं होता। वह मनुष्य की क्षमता या प्रशिक्षण को दरकिनार करके जन्म पर आधारित पेशा निर्धारित करती है।
  • जु:शुल्यक विपितपिस्थितयों मेंपेश बालक अनुपितनाह देता फल भूखे मरने की नौबत आ जाती है।

प्रश्न 2. जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? 

उत्तर: जातिप्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण बनती रही है क्योंकि यहाँ जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। उसे पेशा बदलने की अनुमति नहीं होती। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है क्योंकि उद्योग धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है।

ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य को पेशा न बदलने की स्वतंत्रता न हो तो भुखमरी व बेरोजगारी बढ़ती है। हिंदू धर्म की जातिप्रथा किसी भी व्यक्ति को पैतृक पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती। आज यह स्थिति नहीं है। सरकारी कानून, समाज सुधार व शिक्षा के कारण जाति प्रथा के बंधन कमजोर हुए हैं। पेशे संबंधी बंधन समाप्त प्राय है। यदि व्यक्ति अपना पेशा बदलना चाहे तो जाति बाधक नहीं है।

प्रश्न 3. लेखक के मत से दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? 

उत्तर: लेखक के मत से ‘दासता’ से अभिप्राय केवल कानूनी पराधीनता नहीं है। दासता की व्यापक परिभाषा है-किसी व्यक्ति को अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता न देना। इसका सीधा अर्थ है-उसे दासता में जकड़कर रखना। इसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार व कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है।

प्रश्न 4. शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?

उत्तर: शारीरिक वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए। वे शारीरिक वंश परंपरा व सामाजिक उत्तराधिकार के आधार पर असमान व्यवहार को अनुचित मानते हैं। उनका मानना है कि समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है। तो उसे समाज के सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर व समान व्यवहार उपलब्ध करवाने चाहिए। राजनीतिज्ञों को भी सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। समान व्यवहार और स्वतंत्रता को सिद्धांत ही समता का प्रतिरूप है। सामाजिक उत्थान के लिए समता का होना अनिवार्य हैं।

प्रश्न 5. सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?

उत्तर: हम लेखक की बात से सहमत हैं। उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। भावनात्मक समत्व तभी आ सकता है जब समान भौतिक स्थितियाँ व जीवन-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। समाज में जाति-प्रथा का उन्मूलन समता का भाव होने से ही हो सकता है। मनुष्य की महानता उसके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप होनी चाहिए। मनुष्य के प्रयासों का मूल्यांकन भी तभी हो सकता है जब सभी को समान अवसर मिले। शहर में कान्वेंट स्कूल व सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों के बीच स्पर्धा में कान्वेंट स्कूल का विद्यार्थी ही जीतेगा क्योंकि उसे अच्छी सुविधाएँ मिली हैं। अत: जातिवाद का उन्मूलन करने के बाद हर व्यक्ति को समान भौतिक सुविधाएँ मिलें तो उनका विकास हो सकता है, अन्यथा नहीं।

प्रश्न 6. आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/ समझेंगी?

उत्तर: लेखक ने अपने आदर्श समाज में भ्रातृता के अंतर्गत स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। भ्रातृता से अभिप्राय भाईचारे की भावना अथवा विश्व बंधुत्व की भावना से है। जब यह भावना किसी व्यक्ति विशेष या लिंग विशेष की है ही नहीं तो स्त्रियाँ स्वाभाविक रूप से इसमें सम्मिलित हो जाती हैं। आखिर स्त्री का स्त्री के प्रति प्रेम भी तो बंधुत्व की भावना को ही प्रकट करता है। इसलिए मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि यह शब्द पूर्णता का द्योतक है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. डॉ० आंबेडकर के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए – गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। क्या आज भी यह स्थिति विद्यमान है। 

उत्तर: डॉ० आंबेडकर ने भारत की जाति प्रथा पर सटीक विश्लेषण किया है। यहाँ जातिप्रथा की जड़ें बहुत गहरी हैं। जाति व धर्म के ठेकेदारों ने लोगों के पेशे को जन्म से ही निर्धारित कर दिया भले ही वह उसमें पारंगत हो या नहीं हो। उसकी रुचि न होने पर भी उसे वही कार्य करना पड़ता था। इस व्यवस्था को श्रम विभाजन के नाम पर लागू किया गया था। आज यह – स्थिति नहीं है। शिक्षा, समाज सुधार, तकनीकी विकास, सरकारी कानून आदि के कारण जाति के बंधन ढीले हो गए हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में जाति का महत्त्व नगण्य हो गया है।

प्रश्न 2. डॉ० भीमराव की कल्पना के आदर्श समाज की आधारभूत बातें संक्षेप में समझाइए। आदर्श सामाज की स्थापना में डॉ० आंबेडकर के विचारों की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। 

उत्तर: डॉ० भीमराव आंबेडकर की कल्पना के आदर्श समाज की आधारभूत बातें निम्नलिखित हैं –

  • उनका यह आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता व भ्रातृता पर आधारित होगा।
  • उस समाज में गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके।
  • ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होगा तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।
  • सामाजिक जीवन में अवाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। डॉ० आंबेडकर के विचार निश्चित रूप से क्रांतिकारी हैं, परंतु व्यवहार में यह बेहद कठिन हैं। व्यक्तिगत गुणों के कारण जो वर्ग समाज पर कब्ज़ा किए हुए हैं, वे अपने विशेषाधिकारों को आसानी से नहीं छोड़ सकते। यह समाज कुछ सीमा तक ही स्थापित हो सकता है।

प्रश्न 3. जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर क्या है? ‘ श्रम विभाजन और जातिप्रथा’ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर: जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर यह है कि जाति के नियामक विशिष्ट वर्ग के लोग हैं। जाति वाले व्यक्तियों की इसमें कोई भूमिका नहीं है। ब्राह्मणवादी व्यवस्थापक अपने हितों के अनुरूप जाति व उसका कार्य निर्धारित करते हैं। वे उस पेशे को विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं बदलने देते, भले ही लोग भूखे मर गए। श्रम विभाजन में कोई व्यवस्थापक नहीं होता। यह वस्तु की माँग, तकनीकी विकास या सरकारी फैसलों पर आधारित होता है। इसमें व्यक्ति अपना पेशा बदल सकता है।

प्रश्न 4. लोकतंत्र से लेखक को क्या अभिप्राय है?

उत्तर: लेखक कहता है कि लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है। यह मूलतः सामूहिक दिनचर्या की एक रीति और समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का लाभ प्राप्त है। इनमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो। उनका मानना है कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का नाम ही लोकतंत्र है। इसमें सभी का सहयोग होना चाहिए।

प्रश्न 5. लेखक ने मनुष्य की क्षमता के बारे में क्या बताया है।

उत्तर: लेखक बताता है कि मनुष्य की क्षमता तीन बातों पर निर्भर करती हैं –

  • शारीरिक वंश परंपरा
  • सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात् सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि सभी उपलब्धियाँ जिसके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्ट शिक्षा प्राप्त करता है।
  • मनुष्य के अपने प्रयत्न

लेखक का मानना है कि असमान प्रयत्न के कारण असमान व्यवहार को अनुचित नहीं कहा जा सकता। वे प्रथम दो बातों पर असमानता को अनुचित मानते हैं।

प्रश्न 6. “श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जातिप्रथा गंभीर दोषों से युक्त है।” स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक कहता है कि श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जातिप्रथा दोषों से युक्त है। इस विषय में लेखक निम्नलिखित तर्क देता है –

  • जातिप्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा से नहीं होता।
  • मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्त्व नहीं रहता।
  • जातिप्रथा के कारण मनुष्य में दुर्भावना से ग्रस्त रहकर टालू काम करने वे कम काम करने की भावना उत्पन्न होती
  • जातिप्रथा के कारण श्रम विभाजन होने पर निम्न कार्य समझे जाने वाले कार्यों को करने वाले श्रमिक को भी हिंदू समाज घृणित व त्याज्य समझता है।

प्रश्न 7. डॉ० आंबेडकर ‘समता’ को काल्पनिक वस्तु क्यों मानते हैं?

उत्तर: डॉ० आंबेडकर का मानना है कि जन्म, सामाजिक स्तर, प्रयत्नों के कारण भिन्नता व असमानता होती है। पूर्व समता एक काल्पनिक स्थिति है। इसके बावजूद वे सभी मनुष्यों को विकसित होने के समान अवसर देना चाहते हैं। वे सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार चाहते हैं।

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हमें उम्मीद है कि कक्षा 12 हिंदी (आरोह) अध्याय 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज हिंदी के महत्वपूर्ण प्रश्नों ने आपकी मदद की। यदि आपके पास कक्षा 12 हिंदी (आरोह) अध्याय 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज के महत्वपूर्ण प्रश्नो या कक्षा 12 के किसी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न, नोट्स, वस्तुनिष्ठ प्रश्न, क्विज़, या पिछले वर्ष के प्रश्नपत्रों के बारे में कोई सवाल है तो आप हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं या नीचे comment कर सकते हैं। 


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