डायरी के पन्ने Important Questions || Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 4 in Hindi ||

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पाठ – 4

डायरी के पन्ने 

In this post we have mentioned all the important questions of class 12 Hindi (Vitan) chapter 4 डायरी के पन्ने in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 12 के हिंदी (वितान) के पाठ 4 डायरी के पन्ने के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
Subjectहिंदी (वितान)
Chapter no.Chapter 4
Chapter Nameडायरी के पन्ने
CategoryClass 12 Hindi (Vitan) Important Questions
MediumHindi
Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 4 डायरी के पन्ने Important Questions

Chapter 4 डायरी के पन्ने

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

प्रश्न 1: ‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज हैं। एक ऐसी आवाज, जो नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की हैं।” इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के सदर्भ में पठित अशों पर विचार करें।

उत्तर – इल्या इहरनबुर्ग ने जो कहा वह बिलकुल सही कहा। यहूदियों की संख्या 60 लाख थी। सभी जुल्म सहने को मजबूर थे। किसी में विरोध करने का साहस नहीं था। लेकिन 13 वर्ष की लड़की ऐन फ्रैंक ने यह साहस किया। नाजियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को लिपिबद्ध किया। यह डायरी नाजियों की क्रूर मानसिकता का परिचय देती है। अकेली लड़की ने कुछ पृष्ठों के द्वारा 60 लाख यहूदियों का प्रतिनिधित्व किया। एक ऐसी आवाज़ यहूदियों के पक्ष में बोली जो इस सारे यंत्रणाओं की खुद स्वीकार थी। ऐन फ्रैंक की आवाज़ किसी भी संत या कवि की आवाज़ से कहीं अधिक सशक्त है।

प्रश्न 2: ‘काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला .। ” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी-लेखन का कारण छिपा हैं?

उत्तर – ऐन एक साधारण लड़की थी। वह अपनी पढ़ाई सामान्य ढंग से करती थी, परंतु उसे सबसे अक्खड़ माना जाता था। उसे हर समय डाँट-फटकार सहनी पड़ती थी। वह एक जगह लिखती भी है-“मेरे दिमाग में हर समय इच्छाएँ, विचार, आशय तथा डॉट-फटकार ही चक्कर खाते रहते हैं। मैं सचमुच उतनी घमंडी नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। मैं किसी और की तुलना में अपनी नयी कमजोरियों और खामियों को बेहतर तरीके से जानती हूँ।” एक अन्य स्थान पर वह लिखती है-“लोग मुझे अभी भी इतना नाकघुसेड़ और अपने आपको तीसमारखाँ समझने वाली क्यों मानते हैं?” वह यह भी लिखती है-“कोई मुझे नहीं समझता” इस प्रकार ऐन की टिप्पणियों से पता चलता है कि अज्ञातवास में उसे समझने वाला कोई नहीं था।

वह स्वयं को बदलने की कोशिश करती थी, परंतु फिर किसी-न-किसी के गुस्से का शिकार हो जाती थी। उपदेशों, हिदायतों से वह उकता चुकी थी तथा अपनी भावनाएँ ‘किट्टी’ नामक गुड़िया के माध्यम से व्यक्त की। हर मामले पर उसकी अपनी सोच है चाहे वह मिस्टर डसेल का व्यक्तित्व ही या महिलाओं के संबंध में विचार। अकेलेपन के कारण ही उसने डायरी में अपनी भावनाएँ लिखीं।

प्रश्न 3: ‘प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें-इस की स्वतत्रता स्त्री सी छीनकर हमारी विश्व-व्यवस्था न न सिर्फ स्त्री की व्यक्तित्व-विकास के अनक अवसरों से वचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की हैं।’ ऐन की डायरी के 13 जून, 1944 के अश में व्यक्त विचारों के सदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूंढ़े।

अथवा

‘डायरी के पन्ने’ के आधार पर औरतों की शिक्षा और उनके मानवाधिकारों के बारे में ऐन के विचारों को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – पूरे विश्व में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। पुरुषों ने सदा ही औरतों पर अधिकार किया है। उन्होंने औरतों पर इस आधार पर शासन करना शुरू किया कि औरतें उनसे कमज़ोर हैं। पुरुष का काम कमाई करना है जबकि स्त्री का कार्य बच्चे पैदा करना और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करना है। पुरुष औरत से शारीरिक संतुष्टि की अपेक्षा रखता है। इस शारीरिक आनंद में। यदि औरत गर्भवती हो जाए तो पुरुष कहता है कि बच्चा पैदा कर लो। केवल अपने स्वार्थ के लिए पुरुषों ने औरतों पर अन्याय किया है। जो अधिकार प्रकृति ने औरत को दिया उसका अनुचित लाभ पुरुष ने उठाया है। इस कारण पूरे विश्व में जनसंख्या की समस्या बढ़ी है।

प्रश्न 4: “एंन की डायरी अगर एक एतिहासिक शेर का जीवत दस्तावेज है, तरे साथ ही उसके निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथलपुथल का र्भा। इन मुष्ठा’ में दानी’ का फ़र्क मिट गया तो ” हस कथन पर विचार करतै हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूवंक व्यक्त करों।

अथवा

‘डायरी के पर्न्स’ पाठ के आधार पर बताइए कि ऐन की डायरी एक ऐतिहासिक दौर का दस्तावेज हैं।

अथवा

ऐन फ्रैंक की डायरी में एंसौ क्या विर्शयताएँ हँ’ कि वह पिछले 50 वर्षों में विश्व में सबसे अधिक महां गर्ड पुस्तकों में से एक हैं?

उत्तर – ऐन फ्रैंक की डायरी से हमें उसके जीवन व तत्कालीन परिवेश का परिचय मिलता है। इसमें ऐतिहासिक दूब्रितीय विश्व युदृध की घटनाओ, नाजियों के अत्याचारों आदि का वर्णन मिलता है, साथ ही ऐन के निजी सुरद्र-दुख व भावनात्मक क्षण भी व्यक्त हुए हैं। ऐन ने यहूदी परिवारों की अकथनीय यंत्रणाआँ व पीडाओं का चित्रण किया है। लये अरसे तक गुप्त स्थानों पर छिपे रहना, गोलीबारी का आतंक, भूख, गरीबी, बीमारी, मानसिक तनाव, जानवरों जैसा जीवन, चारी का भय, नाजियों का आतंक आरि अमानवीय दृश्य मिलते हैं।

साथ ही ऐन का अपने परिवार, विशेषता माँ और सहयोगियों से मतभेद, डाँट…फटकार, खीझ, निराशा, एकांत का दुख, दूसरों दवारा स्वय पर किए गए आक्षेप, प्रकृति के लिए बेचैनी, पीटर के साथ सबंध आदि का वर्णन मिलता है। उसके व्यक्तिगत सुख-दुख भी इन पृष्ठों में युदृध की विभीषिका में एकमेक हो गए हैँ। इस प्रकार यह डायरी एक ऐतिहासिक दस्तावेज होते हुए भी ऐन के व्यक्तिगत सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल को व्यक्त करती है।

प्रश्न 5: ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निजीव गुड़िया) को सबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की जरूरत क्यों महसूस की होगी?

उत्तर – ऐन ने अपनी डायरी की प्रत्येक चिट्ठी किट्टी अपनी गुडिया को संबोधित करके लिखी। उसे यह संबोधित करने की जरूरत इसलिए पड़ी होगी ताकि गोपनीयता बनी रहे। यदि यह डायरी कभी पुलिस के हाथ लग भी जाए तो पुलिस इसे बच्चों की डायरी समझे और ऐन फ्रैंक को छोड़ दे। दूसरी बात यह है कि ऐन को अपने जीवन में कभी कोई सच्चा मित्र नहीं मिला। उसे कभी कोई व्यक्ति नहीं मिला जो उसकी भावनाओं को समझता। उसके बारे में सोचता और उसके दुख-सुख के बारे में उससे बातें करता। शायद इसलिए भी उसने अपनी चिट्ठियाँ अपनी निर्जीव गुड़िया को संबोधित की हैं। इसे भी जानें बादरोलसन, 26 नवंबर (एपी), नाजी यातना शिविरों का रौंगटे खड़े करने वाला चित्रण कर दुनिया भर में मशहूर हुई ऐन फ्रैंक का नाम हॉलैंड के उन हजारों लोगों की सूची में महज़ एक नाम के रूप में दर्ज है जो यातना शिविरों में बंद थे।

अन्य हल प्रश्न

बोधात्मक प्रशन

प्रश्न 1: ऐन की डायरी से उसकी किशोरावस्था के बारे में क्या पता चलता है। ‘डायरी के पन्ने’ कहानी के आधार पर लिखिए।

उत्तर – ऐन की डायरी किशोर मन की ईमानदार अभिव्यक्ति है। इससे पता चलता है कि किशोरों को अपनी चिट्ठयों और उपहारों से अधिक लगाव होता है। वे जो कुछ भी करना चाहते हैं उसे बड़े लोग नकारते रहते हैं, जैसे ऐन का केश-विन्यास जो फ़िल्मी सितारों की नकल करके बनाया जाता था। इस अवसर पर बड़ों द्वारा बात-बात पर कमी निकाली जाती है या किशोरों को टोका जाता है। यह बात किशोरों को बहुत ही नागवार गुजरती है। किशोर बड़ों की अपेक्षा अधिक ईमानदारी से जीते हैं। इन्हें जीने के लिए सुंदर, स्वस्थ वातावरण चाहिए। किशोरावस्था में ऐन की भाँति हम सभी अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

प्रश्न 2: ‘ऐन की डायरी’ के अंश से प्राप्त होने वाली तीन महत्वपूर्ण जानकारियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – ‘ऐन की डायरी’ के अंश से प्राप्त होने वाली तीन महत्वपूर्ण जानकारियाँ निम्नलिखित हैं –

  • हिटलर द्वारा यहूदियों को यातना देने के विषय में।
  • स्त्रियों की स्वतंत्रता के विषय में आधुनिक विचार।
  • डच लोगों की प्रवृत्ति तथा प्रतिक्रिया।

प्रश्न 3: “डायरी के पले‘ पाठ के अपर पर महिलाओं के बारे में एंन फ्रैंक के विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ऐन समाज में स्कियो की स्थिति की अन्यायपूर्ण कहती है। उसका मानना है कि शारीरिक अक्षमता व आधिक कमजोरी के बहाने रने पुरुषों ने स्तियों को घर में बाँधकर रखा है। आधुनिक युग में शिक्षा है काम व जागृति रने श्चियों में भी जागृति आई है। अब स्वी पूर्ण स्वतंत्रता चाहती है। ऐन चाहती है कि स्थियों को पुरुषों के बराबर सम्मान मिले क्योकि समाज के निर्माण में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। वह स्वी–जीवन के अनुभव को अतुलनीय बताती है।

प्रश्न 4: अज्ञातवास में रहते हुए भी एन जिले के प्रति अपनी रुवि व जानकारी केरी बनाए रखती हैं?

उत्तर – ऐन अपने प्रिय फिल्मी कलाकारों की तसवीरें रविवार के दिन अलग करती थी। उसके शुभचिंतक मिस्टर क्रुगलर, सोमवार के हित ‘सिनेमा एंड थियेटर‘ पत्रिका ले आते थे। घर के बाकी लोग इसे पैसै की बरबादी मानते थे। उसे यह फायदा होता था कि साल भर बाद भी उसे फिल्मी कलाकारों के नाम सही–सही याद थे। उसके पिता के दफ्तर में वाम करने वली जब फिल्म देखने जाती तो वह पहले ही फिल्म के बारे में बता देती थी।

प्रश्न 5: एएसएस का बुलावा आने पर फ्रैंक परिवार में सन्माटा क्या‘ छा गया?

उत्तर – दूसरे बिरज–युदृध में जर्मन लोग यहूदियों यर अत्याचार करते के वे उन्हें यातनागृहों में भेज रहे थे। वे कहीं जा नहीं सकते के जब फ्रैंक परिवार में एएसएस का बुलावा आया तो वे सभी यह सोचकर सन्न रह गए कि अब उन्हें असहनीय जुल्मी का शिकार होना पडेगा। परिवार किसी गुप्त स्थान पर जाने को तैयारी करने लगा। जीवन के पति किसी अनहोनी की आशंका को सोचकर परिवार में समाटा छा गया।

प्रश्न 6: हर्लिडे के प्रतिरीर्धा दल भूमिगत लोगों की सहायता किस प्रकार करने थे?

उत्तर – दूसरे विश्व…युदूघ में ‘फ्री नीदरलैंड़स‘ प्रतिरोधी दल था जो भूमिगत लोगों की सहायता करता था। वह पीडितों के लिए नकली पहचान–पत्र बनाता था, उन्हें विस्तीय सहायता प्रशन करता था, वा इसाइयों के लिए काम की तलाश करता था। दल के लोग पुरुषों से कारोबार तथा राजनीति की खाते करने थे, और महिलाओँ के साथ भोजन व युदृध के कष्ट की बातें करने थे। वे हर समय खुशदिल दिखते थे तथा लोगों की रक्षा कर रहे थे।

प्रश्न 7: “डायरी के पन्ने‘ में एंन ने आशा व्यक्त की है वि, अगली सदी में ‘औरत‘ ज्यादा सम्मान और सराहना काँ हकदार बने‘र्गा। है–बया इस सर्वा में ऐसा हुआ हैं? पक्ष या विपक्ष में तर्कसंगत उतार दीजिए।

उत्तर – ‘डायरी के पन्ने‘ में ऐन ने आगामी सदी में औरतों को अधिक सम्मान मिलने की आशा व्यक्त भी है। उसकी ये आशाएँ इस सदी में काफी हद तक पा हुईं हैं। औरतों को कानून के स्तर पर पुरुषों रने अधिक अधिकार मिले हैं। वे शिक्षा, विज्ञान, उदृयोग, राजनीति–हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। वे अपने नेरी पर खडी हैं तथा कुछ क्षेत्रों में उन्होंने पुरुषों को हाशिए पर कर दिया है।

प्रश्न 8: ‘एन र्का डायरी हैं उसकी निजी भावनात्मक उथल–पुथल का दस्तावेज भी हैं। इस कथन र्का विवेचना र्काजिए।

उत्तर – ऐन को अज्ञातवास के दो वर्ष डर व भय में गुजारने पहुँ। यहाँ उसे समझने व सुनने वाला कोई नहीं था। यहाँ रहने वाले लोगों में वह सबसे छोटी थी। इस कारण उसे सदैव डाँट–फ़टकार मिलती थी। यहाँ उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं मिलता। वह अपने सारे व्यक्तिगत अनुभव व मानसिक उथलपुथल को डायरी के पले पर लिखती है। इस तरह यह डायरी उसकी निजी भावनात्मक उथल–पुथल का दस्तावेज भी हैं।

प्रश्न 9: ऐन फ्रैंक कौन थी।’ उसर्का डायरी क्यों प्रसिदध हँ?

उत्तर – ऐन फ्रैंक एक यहूदी परिवार की लड़कौ थी। हिटलर के अत्याचारों से उसे भी अन्य यहूदियों की तरह अपना सावन बचाने के लिए दो वर्ष से अधिक समय तक अज्ञातवास में रहना पडा। इस दौरान उसने अज्ञातवास की पीडा, भय, आतंक , प्रेम, घृणा, हवाई हमले का डर, किशोरावस्था के सपने, अकेलापन, प्रकृति के प्रति संवेदना, युदृध को पीडा आदि का वर्णन अपनी डायरी में किया है। यह डायरी यहूदियों के खिलाफ़ अमानवीय दमन का पुख्ता सबूत है। इस कारण यह डायरी प्रसिदृध है।

प्रश्न 10: एन फ्रैंक की डायरी के आधार पर नाजियों के अत्याचारी‘ पर टिप्पणी र्काजिए।

उत्तर – ऐन फ्रैंक की डायरी से ज्ञात होता है कि दूसरे विश्व–सदम में नाजियों ने यहूदियों को अनगिनत यातनाएँ दी तथा उम्हें भूमिगत जीवन जीने के लिए मज़बूर कर दिया डर इतना था कि ये लोग सूटकेस लेकर भी सड़क पर नहीं निकल सकते थे। उम्हें दिन का सूर्य व रात का चंद्रमा देखना भी वर्जित था। इन्हें राशन की कमी रहती थी तथा बिजली का कांटा भी था ये फटे–पुराने कपडे और धिसे–पिटे जूत्तों से काम चलाते थे।

निबधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: ऐन की डायरी के माध्यम से हमारा मन सभी युद्ध-पीड़ितों के लिए कैसा अनुभव करता है? ‘डायरी के पन्ने कहानी के आधार पर बताइए।

उत्तर – ऐन की डायरी में युद्ध-पीड़ितों की ऐसी सूक्ष्म पीड़ाओं का सच्चा वर्णन है जैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। ह से पीड़ितों के प्रति हमारा मन करुणा और दया से भर जाता है। मन में हिंसा और युद्ध के प्रति घृणा का भाव आता है। हम सोचते हैं कि युद्ध, विजेता और पराजित दोनों पक्षों के लिए ही आघात तथा पीड़ा देने वाला होता है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी नागरिकों के नन्हे बच्चों को कितना भटकना पड़ता है, यह पीड़ा की पराकाष्ठा है। यदि ऐन के साथ ऐसा बुरा व्यवहार न हुआ होता तो उसकी इस तरह अकाल मृत्यु न हुई होती। ऐन के परिवार के साथ जैसा हुआ वैसा न जाने कितने लोगों के साथ हुआ होगा। इसलिए वे लोग, जो युद्ध का कारण बनते हैं, ऐन की डायरी पढ़कर उसे अपने प्रति अनुभव करके देखें।

प्रश्न 2: ‘डायरी के पन्ने’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ऐन फ्रैंक बहुत प्रतिभाशाली तथा परिपक्व थी?

उत्तर – ऐन फ्रैंक की प्रतिभा और धैर्य का परिचय हमें उसकी डायरी से मिलता है। उसमें किशोरावस्था की झलक कम और सहज शालीनता अधिक देखने को मिलती है। उसकी अवस्था में अन्य कोई भी होता तो विचलित एवं बेचैनी का आभास देता। ऐन ने अपने स्वभाव और अवस्था पर नियंत्रण पा लिया था। वह एक सकारात्मक, परिपक्व और सुलझी हुई सोच के साथ आगे बढ़ रही थी। उसमें कमाल की सहनशक्ति थी। अनेक बातों को, जो उसे बुरी लगती थीं, वह शालीन चुप्पी के साथ बड़ों का सम्मान करने के लिए सहन कर जाती थी। पीटर के प्रति अपने अंतरंग भावों को भी सहेजकर वह केवल डायरी में व्यक्त करती थी। अपनी इन भावनाओं को वह किशोरावस्था में भी जिस मानसिक स्तर से सोचती थी वह वास्तव में सराहनीय है। परिपक्व सोच का ही परिणम था कि वह अपने मन के भाव, उद्गार, विचार आदि डायरी में ही व्यक्त करती थी। यदि ऐन में ऐसी सधी हुई परिपक्वता न होती तो हमें युद्ध काल की ऐसी दर्द-भरी कहानी पढ़ने को नहीं मिल सकती थी।

प्रश्न 3: ‘डायरी के पन्ने’ पाठ के आधार पर ऐन द्वारा वर्णित संधमारी वाली घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – ऐन ने अपनी डायरी में कष्ट देने वाली अनेक बातों में से सबसे प्रमुख कष्टदायक बात अज्ञातवास को ही कहा है। किसी बस्ती में छिपकर रहना बड़ा ही कठिन काम है। 11 अप्रैल, 1944 की जो घटना ऐन ने लिखी है उससे पता चलता है कि वे लोग अनेक कष्टदायी स्थितियों के साथ-साथ सेंधमारों से भी संघर्ष करते थे। . उस दिन रात साढ़े नौ बजे पीटर ने जिस प्रकार ऐन के पिता को बाहर बुलाया उससे ऐन समझ गई कि दाल में कुछ काला है। सेंधमारों ने अपना काम शुरू कर दिया था। इसलिए ऐन के पिता, मिस्टर वान दान और पीटर लपककर नीचे पहुँचे।

ऐन, मागौंट, उनकी माँ और मिसेज वान डी ऊपर डरे-सहमे से इंतजार करते रहे। एक जोर के धमाके की आवाज से इन लोगों के होश उड़ गए। नीचे गोदाम में सन्नाटा था और पुरुष लोग वहीं सेंधमारों के साथ संघर्ष कर रहे थे। डर से काँपने पर भी ये लोग शांत बने रहे। तकरीबन 15 मिनट बाद ऐन के पिता सहमे हुए ऊपर आए और इन लोगों से बत्तियाँ बंद करके ऊपर छत पर चले जाने को कहा। अब ये लोग डरने की प्रतिक्रिया जताने की स्थिति में भी नहीं थे। सीढ़ियों के बीच वाले दरवाजे पर ताला जड़ दिया गया। बुककेस बंद कर दिया गया, नाइट लैंप पर स्वेटर डाल दिया गया।

पीटर अभी सीढ़ियों पर हीं था कि जोर के दो धमाके सुनाई दिए। उसने नीचे जाकर देखा कि गोदाम की तरफ का आधा भाग गायब था। वह लपककर होम गार्ड को चौकन्ना करने भागा। मिस्टर वान ने समझदारी दिखाते हुए शोर मचाया ‘पुलिस! पुलिस!’ यह सुनकर सेंधमार भाग गए और गोदाम के फट्टे फिर से लगा दिए गए। लेकिन वे कुछ ही मिनट में लौट आए और फिर से तोड़ा-फोड़ी शुरू हो गई। उस डरावनी रात में बड़ी मुश्किल से पुरुषों ने संघर्ष करके जान बचाई।

प्रश्न 4: ‘डायरी के पन्ने’ पाठ की लखिका के ये शब्द-‘स्मृतियाँ मेरे लिए पोशाकों की तुलना में ज्यादा मायने रखती हैं।’

उत्तर – इस बात को सिद्ध करते हैं कि डायरी-लेखन उसके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सिद्ध कीजिए। लेखिका के परिवार ने जैसे ही अज्ञातवास में जाने का निर्णय लिया, उसने सबसे पहले अपनी डायरी को बैग में रखा। इसके बाद उसने अनेक अजीबोगरीब चीजें बैग में डालीं। उनमें से अधिकांश चीजें उसे उपहार में मिली थीं। उन उपहारों से जुड़ी स्मृतियाँ उसके लिए महत्वपूर्ण थीं। वह पोशाकों को कम महत्व देती थी। उसने अपनी सभी भावनाओं की अभिव्यक्ति डायरी में लिखी, जबकि परिवार में अन्य सदस्य भी थे। उसने परिवार, समाज, सरकार व अपने विचारों को डायरी में लिखा। इससे पता चलता है कि डायरी-लेखन उसके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

प्रश्न 5: ‘डायरी के पन्ने’ पाठ के आधार पर ऐन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ‘डायरी के पन्ने’ पाठ के आधार पर ऐन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • चिंतक व मननशील – ऐन का बौद्धक स्तर बहुत ऊँचा है। वह नस्लवादी नीति के प्रभाव को प्रस्तुत करती है। उसकी डायरी भोगे हुए यथार्थ की उपज है। वह अज्ञातवास में भी अध्ययन करती है।
  • स्त्री-संबंधी विचार – ऐन स्त्रियों की दयनीय दशा से चिंतित है। वह स्त्री-जीवन के अनुभव को अतुलनीय बताती है। वह चाहती है कि स्त्रियों को पुरुषों के बराबर सम्मान दिया जाए। वह स्त्री-विरोधी पुरुषों व मूल्यों की भत्सना करना चाहती है।
  • संवेदनशील – ऐन संवेदनशील लड़की है। उसे बात-बात पर सबसे डाँट पड़ती है क्योंकि उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं है। वह लिखती भी है-“काश! कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ जाता।” अपनी डायरी में अपनी गुड़िया को वह पत्र लिखती है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1: निम्नलिखित गदयांशों तथा इन पर आधारित मूल्यपरक प्रश्नोत्तरों को ध्यान से पढ़िए –

(अ) हर कोई जानता था कि बुलावे का क्या मतलब होता है। यातना शिविरों के नजारे और वहाँ की कोठरियों के दृश्य मेरी आँखों के आगे तैर गए। हम अपने पापा को इस तरह की नियति के भरोसे कैसे छोड़ सकते थे। हम उन्हें । हर्गिज नहीं जाने देंगे। मार्गोंट ने उस वक्त कहा था जब वह ड्राइंग रूम में माँ की राह देख रही थी। माँ मिस्टर वान दान से पूछने गई हैं कि हम कल ही छुपने की जगह पर जा सकते हैं। वान दान परिवार भी हमारे साथ जा रहा है। हम लोग कुल मिलाकर सात लोग होंगे। मौन। हम आगे बात ही नहीं कर पाए। यह खयाल कि पापा यहूदी अस्पताल में किसी को देखने गए हुए हैं, माँ के लिए इंतजार की लंबी घड़ियाँ, गरमी, सस्पेंस, इन सारी चीजों ने हमारे शब्द ही हमसे छीन लिए थे। तभी दरवाजे की घंटी बजी-यह हैलो ही होगा, मैंने कहा था। दरवाजा मत खोलो, मार्गोंट ने हैरान होते मुझे रोका, लेकिन इसकी जरूरत नहीं थी क्योंकि हमने नीचे से माँ और मिस्टर वान दान को हैलो से बात करते हुए सुन लिया था। तब दोनों ही भीतर आए और अपने पीछे दरवाजा बंद कया जब भी दवाले की घी बड़ी तोमु या माटक उच्करनचे देना पता कि क्या पा आ गए ह।

प्रश्न:

  • हम उन्हें हरगिज न जाने देंगे-यदि आप ऐन फ्रैंक की जगह होते तो अपने पापा के साथ कैसा व्यवहार करते और क्यों?
  • ऐन फ्रैंक के परिवार की तरह यदि आपके परिवार पर कोई सकट आ जाए तो आप उसका सामना कैसे करेंगे?
  • बड़ों तथा अपनों के प्रति अपनत्व दशनेि के लिए आप क्या-क्या करेंगे?

उत्तर –

  • यदि मैं ऐन फ्रैंक की जगह होता तो संकट की इस घड़ी में ऐसा बुलावा आने पर मैं भी उन्हें अकेले न जाने देता। परिवार के सभी लोग मिलकर संकट का सामना करते क्योंकि मैं अपने बड़ों से अत्यंत अपनत्व एवं लगाव रखता हूँ तथा उनका सम्मान करता हूँ।
  • यदि ऐन फ्रैंक के परिवार की तरह मेरे परिवार पर कोई संकट आता तो मैं परिवार के सभी लोगों के साथ मंत्रणा करता। मैं धैर्य न खोने, साहस बनाए रखने के लिए अन्य सदस्यों को प्रोत्साहित करता। मैं घर के बड़ों की राय मानकर साहसपूर्वक संकट का सामना करता।
  • बड़ों तथा अपनों के प्रति अपनत्व दर्शाने के लिए मैं उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनता, उनकी आज्ञा मानता।

(ब) अज्ञातवास ….. हम कहाँ जाकर छुपेगे? शहर में? किसी घर में? किसी परछस्ती पर? कब ….. कहाँ ….. केसे ….. ये ऐसे सवाल थे जो मैं पूछ नहीं सकती थी लेकिन फिर भी ये सवाल मेरे दिमाग में कुलबुला रहै थे। मागोंट और मैने अपनी बहुत जरूरी चीजे एक थैले में भरनी शुरू कों। मैँने सबसे पहले अपने थैले में यह डायरी दूँसी। इसके बाद मैने कली, रूमाल, स्कूली किताबें, भूक कधी और कुछ पुरानी विटूठियाँ थैले में डालों। मैं अज्ञातवास में जाने के खयाल से इतनी अधिक आतंकित थी कि मैंने थैले में अजीबोगरीब चीजे भर डालों, फिर भी मुझे अफसोस नहीं है। स्मृतियों मेरे लिए पोशाकों की तुलना में ज्यादा मायने रखती है। तब हमने मिस्टर क्लीमेन को कौन किया कि वया वे शाम को हमारे घर आ पाएँगे।

प्रश्न:

  • यदि अचानक आपकां अपरिचित जगह यर रहने जाना हरे तो आपके मन में कौन–कॉंन–रने सवाल होंने? ये सवाल एन के सवालों से कितने मिल हारी?
  • यदि जाप ऐन फ्रैंक की जगह हात और अन्य परिस्थितियों” वहाँ हाती तो आप अपने साथ क्या…क्या तो जाना चाहते और क्यों?
  • यदि मिस्टर क्लीमंन जैसी हॉ मदद की अपेक्षा आपसे कांई करता तो आप किस-किस रूप में उसकी मदद करने और वयां?

उत्तर –

  • यदि मुझे अचानक अपरिचित जगह पर रहने जाना होता तो मेरे मन में भी फ्रैंक जैसे ही सवाल उठते, जैसे-कहाँ रहना है, कितने दिन रहना है, कौन–कौन साथ रहेंगे, केसे समय जीतेगा आदि।
  • यदि मैं ऐन फ्रैंक की जगह होता और यूँ अचानक घर छोड़ना पड़ता तो अपनी पुस्तके, कपडे, रुपये, कई रूमाले, जुराबें, कुछ दवाइयों तथा दैनिक्रोपयोगी वस्तुएँ ले जाता, क्योकि ऐसे माहौल में छिप–छिपकर रहना पड़ता और कुछ खरीदने के लिए बाहर न जा पाता।
  • यदि मिस्टर क्लीमैन जैसी ही मदद की अपेक्षा कोई मुझसे करता तो सकट की घडी में मैं उसकी मदद अवश्य करता। मैं उसका मनोबल बढाता उसका हौंसला बढाते हुए उसकी जरूरत को वस्तुएँ उपलब्ध कराता। मैं उसे हिम्मत से कम लेने की सलाह देता, क्योकि हमारे मानवीय मूल्य त्याग, सहयोग, अपनत्व आदि ऐसा करने के लिए हमें प्रेरित करते।

प्रश्न 2: ऐन-फ्रैंक का परिवार सुरक्षित स्थान पर जाने से पहले किस मनोदशा से गुज़र रहा था और क्यों? ऐसी ही परिस्थितियों से आपको दो-चार होना पड़े तो आप क्या करेंगे?

उत्तर – द्रवितीय विश्व-युद्ध के समय हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण बहुत सारी अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। लोग अपनी जान बचाने के लिए परेशान थे। ऐसे कठिन समय में जब ऐन फ्रैंक के पिता को ए०एस०ए० के मुख्यालय से बुलावा आया तो वहाँ के यातना शिविरों और काल-कोठरियों के दृश्य उन लोगों की आँखों के सामने तैर गए। ऐन फ्रैंक और उसका परिवार घर के किसी सदस्य को नियति के भरोसे छोड़ने के पक्ष में न था। वे सुरक्षित और गुप्त स्थान पर जाकर जर्मनी के शासकों के अत्याचार से बचना चाहते थे। उस समय ऐन के पिता यहूदी अस्पताल में किसी को देखने गए थे। उनके आने की प्रतीक्षा की घड़ियाँ लंबी होती जा रही थीं।

दरवाजे की घंटी बजते ही लगता था कि पता नहीं कौन आया होगा। वे भय एवं आतंक के डर से दरवाजा खोलने से पूर्व तय कर लेना चाहते थे कि कौन आया है? वे घंटी बजते ही दरवाजे से उचककर देखने का प्रयास करते कि पापा आ गए कि नहीं। इस प्रकार ऐन फ्रैंक का परिवार चिंता, भय और आतंक के साये में जी रहा था। यदि ऐसी ही परिस्थितियों से हमें दो-चार होना पड़ता तो मैं अपने परिवार वालों के साथ उस अचानक आई आपदा पर विचार करता और बड़ों की राय मानकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करता। इस बीच सभी से धैर्य और साहस बनाए रखने का भी अनुरोध करता।

प्रश्न 3: हिटलर ने यहूदियों को जातीय आधार पर निशाना बनाया। उसके इस कृत्य को आप कितना अनुचित मानते हैं? इस तरह का कृत्य मानवता पर क्या असर छोड़ता है? उसे रोकने के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे?

उत्तर – हिटलर जर्मनी का क्रूर एवं अत्याचारी शासक था। उसने जर्मनी के यहूदियों को जातीयता के आधार पर निशाना बनाया। किसी जाति-विशेष को जातीय कारणों से ही निशाना बनाना अत्यंत निंदनीय कृत्य है। यह मानवता के प्रति अपराध है। इस घृणित एवं अमानवीय कृत्य को हर दशा में रोका जाना चाहिए, भले ही इसे रोकने के लिए समाज को अपनी कुर्बानी देनी पड़े। हिटलर जैसे अत्याचारी शासक मनुष्यता के लिए घातक हैं। इन लोगों पर यदि समय रहते अंकुश न लगाया गया तो लाखों लोग असमय और अकारण मारे जा सकते हैं। उसका यह कार्य मानवता का विनाश कर सकता है। अत: उसे रोकने के लिए नैतिक-अनैतिक हर प्रकार के हथकंडों का सहारा लिया जाना चाहिए। इस प्रकार के अत्याचार को रोकने के लिए मैं निम्नलिखित सुझाव देना चाहूँगा।

  • पीड़ित लोगों के साथ समस्या पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
  • हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा का जवाब हिंसा से देकर उसे शांत नहीं किया जा सकता, इसलिए इसका शांतिपूर्ण हल खोजने का प्रयास करना चाहिए।
  • अहिंसात्मक तरीके से काम न बनने पर ही हिंसा का मार्ग अपनाने के लिए लोगों से कहूँगा।
  • मैं लोगों से कहूँगा कि मृत्यु के डर से यूँ बैठने से अच्छा है, अत्याचारी लोगों से मुकाबला किया जाए। इसके लिए संगठित होकर मुकाबला करते हुए मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए।
  • हिंसा के खिलाफ़ विश्व जनमत तैयार करने का प्रयास करूंगा ताकि विश्व हिटलर जैसे अत्याचारी लोगों के खिलाफ़ हो जाए और उसकी निंदा करते हुए उसके कुशासन का अंत करने में मदद करे।

प्रश्न 4: ऐन फ्रैंक ने यातना भरे अज्ञातवास के दिनों के अनुभव को डायरी में किस प्रकार व्यक्त किया है? आपके विचार से लोग डायरी क्यों लिखते हैं?

उत्तर – द्रवितीय विश्व-युद्ध के समय जर्मनी ने यहूदी परिवारों को अकल्पनीय यातना सहन करनी पड़ी। उन्होंने उन दिनों नारकीय जीवन बिताया। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपते फिरते रहे। ऐसे समय में दो यहूदी परिवारों को गुप्त आवास में छिपकर जीवन बिताना पड़ा। इन्हीं में से एक ऐन फ्रैंक का परिवार था। मुसीबत के इस समय में फ्रैंक के ऑफ़िस में काम करने वाले इसाई कर्मचारियों ने भरपूर मदद की थी। ऐन फ्रैंक ने गुप्त आवास में बिताए दो वर्षों के समय के जीवन को अपनी डायरी में लिपिबद्ध किया है। फ्रैंक की इस डायरी में भय, आतंक, भूख, प्यास, मानवीय संवेदनाएँ, घृणा, प्रेम, बढ़ती उम्र की पीड़ा, पकड़े जाने का डर, हवाई हमले का डर, बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहकर जीने की पीड़ा, युद्ध की भयावह पीड़ा और अकेले जीने की व्यथा है।

इसके अलावा इसमें यहूदियों पर ढाए गए जुल्म और अत्याचार का वर्णन किया गया है। मेरे विचार से लोग डायरी इसलिए लिखते हैं क्योंकि जब उनके मन के भाव-विचार इतने प्रबल हो जाते हैं कि उन्हें दबाना कठिन हो जाता है और वे किसी कारण से दूसरे लोगों से मौखिक रूप में उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब वे एकांत में उन्हें लिपिबद्ध करते हैं। वे अपने दुख-सुख, व्यथा, उद्वेग आदि लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उस समय तो वे अपने दुख की अभिव्यक्ति और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए लिखते हैं पर बाद में ये डायरियाँ महत्वपूर्ण दस्तावेज बन जाती हैं।

प्रश्न 5: ‘डायरी के पन्ने’ की युवा लेखिका ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में किस प्रकार दवितीय विश्व-युद्ध में यहूदियों के उत्पीड़न को झेला? उसका जीवन किस प्रकार आपको भी डायरी लिखने की प्रेरणा देता है, लिखिए।

उत्तर – ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में इतिहास के सबसे दर्दनाक और भयप्रद अनुभव का वर्णन किया है। यह अनुभव उसने और उसके परिवार ने तब झेला जब हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण अकल्पनीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। ऐन और उसके परिवार के अलावा एक अन्य यहूदी परिवार ने गुप्त तहखाने में दो वर्ष से अधिक समय का अज्ञातवास बिताते हुए जीवन-रक्षा की। ऐन ने लिखा है कि 8 जुलाई, 1942 को उसकी बहन को ए०एस०एस० से बुलावा आया, जिसके बाद सभी गुप्त रूप से रहने की योजना बनाने लगे।

यह उनके जीवन कर । दिन में घर के परदे हटाकर बाहर नहीं देख सकते थे। रात होने पर ही वे अपने आस-पास के परदे देख सकते थे। वे ऊल-जुलूल हरकतें करके दिन बिताने पर विवश थे। ऐन ने पूरे डेढ़ वर्ष बाद रात में खिड़की खोलकर बादलों से लुका-छिपी करते हुए चाँद को देखा था। 4 अगस्त, 1944 को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। सन 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों के उत्पीड़न को झेला। ऐन फ्रैंक का जीवन हमें साहस बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देता है और प्रेरित करता है कि अपने जीवन और आस-पास की घटनाओं को हम लिपिबद्ध करें।

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