बारहमासा Important Questions || Class 12 Hindi (Antra) Chapter 8 in Hindi ||

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पाठ – 8

बारहमासा

In this post we have mentioned all the important questions of class 12 Hindi (Antra) chapter 8 बारहमासा in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 12 के हिंदी (अंतरा) के पाठ 8 बारहमासा के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
Subjectहिंदी (अंतरा)
Chapter no.Chapter 8
Chapter Nameबारहमासा
CategoryClass 12 Hindi (Antra) Important Questions
MediumHindi
Class 12 Hindi (Antra) Chapter 8 बारहमासा Important Questions

Chapter 8 बारहमासा

प्रश्न 1: अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: अगहन मास में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें बड़ी हो जाती हैं। नागमती के लिए यह परिवर्तन बहुत कष्टप्रद है क्योंकि दिन तो जैसे-तैसे कट जाता है परन्तु रात नहीं कट पाती। रात में उसे रह-रहकर प्रिय की याद सताती है। वह घर में अकेली होती है। अतः यह स्थिति उसे वियोग के चरम तक ले जाती है। उसकी स्थिति ऐसे ही है जैसे दीपक की बाती। दीपक की बाती पूरी रात जलती रहती है। नागमती भी वैसी ही विरहाग्नि में जल रही है। अगहन मास की ठंड जमाने वाली होती है। नागमती के हृदय को तो यह ठंड कंपा रही है। वह सोचती है कि यदि उसके पति उसके साथ होते, तो वह इस ठंड को भी झेल जाती। परन्तु उनकी अनुपस्थिति इसके बल को दोगुना किए जा रही है। वह यही सोचकर व्याकुल हो रही है। स्त्रियाँ पति की उपस्थिति में बनाव-शिंगार करने में लगी रहती हैं परन्तु नागमति के लिए यह बनाव-शिंगार कष्टप्रद लग रहा है। उसके पति परदेश को गए हैं। अतः वह किसके लिए यह बनाव-श्रृंगार करे। लोग शीत की मार से बचने के लिए स्थान-स्थान पर आग जलाकर बैठे रहते हैं। परन्तु नागमती को तो विरह रूपी अग्नि अंदर-ही-अंदर जला रही है। नागमती के लिए अगहन मास भी कुछ राहत नहीं देता है क्योंकि बाहर कितनी भी ठंड क्यों न हो परन्तु विरहग्नि अंदर रहकर उसे जला ही देती है।

प्रश्न 2: ‘जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा’ पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: नागमति का पति परदेश गया हुआ है। पति की अनुपस्थिति उसे भयंकर लगती है। वह पति के वियोग में जल रही है। एक स्थान पर पति के वियोग से उत्पन्न विरह को उसने बाज़ रूप में चित्रित किया है। जिस तरह बाज़ अपने शिकार को नोच-नोचकर खा जाता है, वैसे ही विरह रूपी बाज़ नागमती को जीवित नोच-नोचकर खा रहा है। उसे लगता है, जैसे विरह रूपी बाज़ उसे अपना शिकार बनाने के लिए नज़र गड़ाए बैठा है। जो उचित अवसर मिलते ही उसे नोचने लगता है। जब तक यह बाज़ उसे पूर्ण रूप से खा नहीं लेगा, तब तक वह उसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। भाव यह है कि नागमति के लिए पति से अलग होने की स्थिति बहुत ही कष्टप्रद है। विरहग्नि इतनी उग्र होती जा रही है कि इसका विपरीत असर प्रत्यक्ष रूप में न दिखाई दे परन्तु अप्रत्यक्ष रूप में वह उसे लील रहा है। वह चाहकर भी स्वयं को सांत्वना नहीं दे पा रही है। बस इस अग्नि में अकेले जल रही है।

प्रश्न 3: माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?

उत्तर: माघ के महीने में ठंड अपने विकराल रूप में विद्यमान होती है। चारों और पाला अर्थात कोहरा छाने लगता है। विरहिणी के लिए यह स्थिति भी कम कष्टप्रद नहीं है। इसमें विरह की पीड़ा मौत के समान होती है। यदि पति की अनुपस्थिति इसी तरह रही, तो माघ मास की ठंड उसे अपने साथ ही ले जाकर मानेगी। यह मास उसके मन में काम की भावना को जागृत करता है। वह प्रियतम से मिलने को व्याकुल हो उठती है। इसी बीच इस मास में होने वाली वर्षा उसकी व्याकुलता को और भी बड़ा देती है। वर्षा में भीगी हुई नागमती को गीले वस्त्र तथा आभूषण तक तीर के समान चुभ रहे हैं। उसे बनाव-श्रृंगार तक भाता नहीं है। प्रियतम के विरह में तड़पते हुए वह सूख कर कांटा हो रही है। उससे ऐसा लगता है इस विरह में वह इस प्रकार जल रही है कि उसका शरीर राख के समान उड़ ही जाएगा।

प्रश्न 4: वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?

उत्तर: फागुन मास के समय वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें गिरते हैं। विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। हर एक गिरता पत्ता उसके मन में विद्यमान आशा को धूमिल कर रहा है कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आएँगे। पत्तों का पीला रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है। जैसे अपने कार्यकाल समाप्त हो जाने पर पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं, वैसे ही प्रियतम के विरह में जल रही नायिका का रंग पीला पड़ रहा है। अतः फागुन मास उसे दुख को शांत करने के स्थान पर बड़ा ही रहा है। फागुन के समाप्त होते-होते वृक्षों में नई कोपलों तथा फूल आकर उसमें पुनः जान डालेंगे। परन्तु नागमती के जीवन में सुख का पुनः आगमन कब होगा यह कहना संभव नहीं है।

प्रश्न 5: निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-

(क) पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।

सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।

(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।

धिन सारस होई ररि मुई, आइ समेटहु पंख।

(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।

तेहि पर बिरह जराई कै, चहै उड़ावा झोल।।

(घ) यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।

मकु तेहि मारग होई परौं, कंत धरैं जहँ पाउ।।

उत्तर:

(क) दुखी नागमती भौरों तथा कौए से अपने प्रियतम के पास संदेशा ले जाने को कहती है। उसके अनुसार वे उसके विरह का हाल शीघ्र ही जाकर उसके प्रियतम को बताएँ। प्रियतम के विरह में नागमती कितने गहन दुख भोग रही है इसका पता प्रियतम को अवश्य लगा चाहिए। अतः वह उन्हें संबोधित करते हुए कहती है कि तुम दोनों वहाँ जाकर प्रियतम को मेरी स्थिति बताना और कहना की तुम्हारी पत्नी विरह रूपी अग्नि में जलते हुए मर गई है। उस अग्नि से उठने वाले काले धुएँ के कारण हमारा रंग भी काला पड़ गया है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियों में नागमती अपने प्रियतम को अपनी विरह रूपी दशा का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि हे प्रियतम! तुमसे अलग होने पर मेरी दशा बहुत ही खराब हो गई है। मैं तुम्हारे वियोग में इतना रोई हूँ कि मेरी आँखों से आँसू रूप में सारा रक्त बाहर निकल गया है। इसी तरह तड़पते हुए मेरा सारा माँस भी गल गया है और मेरी हड्डियाँ शंख के जैसे श्वेत दिखाई दे रही है। वह आगे कहती है कि तुम्हारा नाम लेते-लेते में सारसों की जोड़ी के समान तड़प-तड़पकर मर गई हूँ। इस समय मैं मृत्यु के समीप हूँ। अतः तुम शीघ्र आकर मेरे पंखों को समेट लो।

(ग) प्रस्तुत पंक्तियों में नागमती कहती है कि हे प्रियतम! मैं तुम्हारे वियोग में सूखती जा रही हूँ। मेरी स्थिति तिनके के समान हो गई है। अर्थात में कमज़ोर हो गई हूँ। मैं इतनी दुर्बल हो गई हूँ कि मेरा शरीर वृक्ष के समान हिलने लगता है। अर्थात जिस प्रकार वृक्ष हवा के झोंके से ही हिलने लगता है, इसी प्रकार में कमज़ोर होने के कारण हिल जाती हूँ। इस पर भी यह विरहग्नि मुझे राख बनाने को व्यग्र है तथा मेरे तन की राख को भी उड़ा दिए जा रहा है।

(घ) नागमती अपने मन के दुख को व्यक्त करते हुए कहती है कि मैं स्वयं के तन को विरहग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती हूँ। इस तरह मेरा शरीर राख का रूप धारण कर लेगा और पवन मेरे शरीर को उड़ाकर मेरे प्रियतम के रास्ते में बिखेर देगी। इस प्रकार मार्ग में चलते हुए अपने पति का में राख रूप में स्पर्श पा जाऊँगी।

प्रश्न 6: प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर:

पहला पद- यह दुःख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू।

प्रस्तुत पद की भाषा अवधी। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। इसमें ‘दुःख दगध’ तथा ‘जोबर जर’ में अनुप्रास अलंकार है। वियोग से उत्पन्न विरह को बहुत मार्मिक रूप में वर्णन किया गया है। विरहणि के दुख की तीव्रता पूरे पद में दिखाई देती है।

दूसरा पद- बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ।

प्रस्तुत पद की भाषा अवधी है। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया गया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। ‘बिरह बाढ़ि’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कँपि-कँपि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। पूस के माह में ठंड की मार का सजीव वर्णन किया गया है।

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