आओ, मिलकर बचाएँ Important Questions || Class 11 Hindi (Aroh) Chapter 20 in Hindi ||

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पाठ – 20

आओ, मिलकर बचाएँ

In this post we have mentioned all the important questions of class 11 Hindi (Aroh) chapter 20 आओ, मिलकर बचाएँ in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 11 के हिंदी (आरोह) के पाठ 20 आओ, मिलकर बचाएँ  के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
Subjectहिंदी (आरोह)
Chapter no.Chapter 20
Chapter Nameआओ, मिलकर बचाएँ
CategoryClass 11 Hindi (Aroh) Important Questions
MediumHindi
Class 11 Hindi (Aroh) Chapter 20 आओ, मिलकर बचाएँ Important Questions

Chapter 20 आओ, मिलकर बचाएँ

कविता के साथ

प्रश्न 1: ‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – कवयित्री ने ‘माटी का रंग’ शब्द का प्रयोग करके यह बताना चाहा है कि संथाल क्षेत्र के लोगों को अपनी मूल पहचान को नहीं भूलना चाहिए। वह इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विशेषताएँ बचाए रखना चाहता है। क्षेत्र की प्रकृति, रहन-सहन, अक्खड़ता, नाच गाना, भोलापन, जुझारूपन, झारखंडी भाषा आदि को शहरी प्रभाव से दूर रखना ही कवयित्री का उद्देश्य है।

प्रश्न 2: भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – इसका अभिप्राय है-झारखंड की भाषा की स्वाभाविक बोली, उनका विशिष्ट उच्चारण। कवयित्री चाहती है कि संथाली लोग अपनी भाषा की स्वाभाविक विशेषताओं को नष्ट न करें।

प्रश्न 3: दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

उत्तर – दिल का भोलापन अर्थात् मन का साफ़ होना-इस पर कविता में इसलिए बल दिया गया है कि अच्छा मनुष्य और वह आदिवासी जिस पर शहरी कलुष का साया नहीं पड़ा वह भोला तो होता ही है, साथ-साथ उसे शहरी कही जानेवाली सभ्यता का ज्ञान नहीं तो वह अपने साफ़ मन से जो कहता है वह अक्खड़ दृष्टिकोण से कहता है। शक्तिशाली संथालों का मौलिक गुण है-जूझना, सो उसे बनाए रखना भी जरूरी है।

प्रश्न 4: प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

उत्तर – इस कविता में आदिवासी समाज में जड़ता, काम से अरुचि, बाहरी संस्कृति का अंधानुकरण, शराबखोरी, अकर्मण्यता, अशिक्षा, अपनी भाषा से अलगाव, परंपराओं को पूर्णत: गलत समझना आदि बुराइयाँ आ गई हैं। आदिवासी समाज स्वाभाविक जीवन को भूलता जा रहा है।

प्रश्न 5: ‘इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है’-से क्या आशय है?

उत्तर – ‘इस दौर में भी’ का आशय है कि वर्तमान परिवेश में पाश्चात्य और शहरी प्रभाव ने सभी संस्कारपूर्ण मौलिक तत्वों को नष्ट कर दिया है, परंतु कवयित्री निराश नहीं है, वह कहती है कि हमारी समृद्ध परंपरा में आज भी बहुत कुछ शेष है। आओ हम उसे मिलकर बचा लें। यही इस समय की माँग है। लोगों का विश्वास, उनकी टूटती उम्मीदों को जीवित करना, सपनों को पूरा करना आदि को सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 6: निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उदघाटित कीजिए

(क) ठंडी होती दिनचर्या में

जीवन की गर्माहट

(ख) थोड़ा-सा विश्वास

थोडी-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ।

उत्तर –

(क) इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों से विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गांभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।

(ख) इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’ ; ‘थोड़ी-सी’ व ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक हैं। अत: अनुप्रास अलंकार है। उर्दू (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों का मिला-जुला प्रयोग किया गया है। तुक, छद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली का प्रयोग दर्शनीय है।

प्रश्न 7: बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर – शहरों में भावनात्मक जुड़ाव, सादगी, भोलापन, विश्वास और खिलखिलाती हुई हँसी नहीं है। इन कमियों से बस्तियों को बचाना बहुत जरूरी है। शहरों के प्रभाव में आकर ही दिनचर्या ठंडी होती जा रही है और जीवन की गर्माहट घट रही है। जंगल कट रहे हैं और आदिवासी लोग भी शहरी जीवन को अपना रहे हैं। बस्ती के आँगन भी सिकुड़ रहे हैं। नाचना-गाना, मस्ती भरी जिंदगी को शहरी प्रभाव से बचाना ज़रूरी है।

कविता के आस-पास

प्रश्न 1: आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?

उत्तर – हम अपने शहर की ऐतिहासिक धरोहर को बचाना चाहेंगे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: आओ, मिलकर बचाएँ-कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

उत्तर – इस कविता में दोनों/पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। बृहतर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलेपन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फसल, हवाएँ-ये सब आधुनिकता का शिकार हो रहे हैं। आज के परिवेश में विकार बढ़ रहे हैं, जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। वह कहती है कि निराश होने की बात नहीं है, क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ बचा है।

प्रश्न 2: लेखिका के प्रकृतिक परिवेश में कौन-से सुखद अनुभव हैं?

उत्तर – लेखिका ने संथाल परगने के प्राकृतिक परिवेश में निम्नलिखित सुखद अनुभव बताए हैं-

  • जगल की ताजा हवा
  • नदियों का निर्मल जल
  • पहाडीं की शांति
  • गीतों की मधुर धुनें
  • मिट्टी की स्वाभाविक सुगंध
  • लहलहाती फसलें कीजिए

प्रश्न 3: बस्ती को बचाएँ डूबने से-आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – बस्ती के डूबने का अर्थ है-पारंपरिक रीति-रिवाजों का लोप हो जाना और मौलिकता खोकर विस्थापन की ओर बढ़ना। यह चिंता का विषय है। आदिवासियों की संस्कृति का लुप्त होना बस्ती के डूबने के समान है।

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