Skip to content

Criss Cross Classes

Our Content is Our Power

Menu
  • Home
  • CBSE
    • Hindi Medium
      • Class 9
      • Class 10
      • Class 11
      • Class 12
    • English Medium
      • Class 9
      • Class 10
      • Class 11
      • Class 12
  • State Board
    • UP Board (UPMSP)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Bihar Board (BSEB)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Chhattisgarh Board (CGBSE)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Haryana Board (HBSE)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Jharkhand Board (JAC)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Uttarakhand Board (UBSE)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Madhya Pradesh Board (MPBSE)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Punjab Board (PSEB)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
    • Rajasthan Board (RBSE)
      • Hindi Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
      • English Medium
        • Class 9
        • Class 10
        • Class 11
        • Class 12
  • EBooks
    • Hindi Medium
      • Class 10
        • Hindi
        • English
        • Maths
        • Science
        • Social Science
      • Class 11
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
      • Class 12
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
    • English Medium
      • Class 10
        • Hindi
        • English
        • Maths
        • Science
        • Social Science
      • Class 11
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
      • Class 12
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
  • Courses
    • Hindi Medium
      • Class 10
        • Hindi
        • English
        • Maths
        • Science
        • Social Science
      • Class 11
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
      • Class 12
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
    • English Medium
      • Class 10
        • Hindi
        • English
        • Maths
        • Science
        • Social Science
      • Class 11
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
      • Class 12
        • Hindi
        • English
        • History
        • Sociology
        • Economics
        • Geography
        • Political Science
  • NIOS
    • Class 10
    • Class 12
  • Grammar
    • English Grammar
  • IGNOU
  • Computer
    • In Hindi
    • In English
  • Contact us
  • About us
Menu

Home » Class 11 Hindi Important Questions » राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions || Class 11 Hindi (Vitan) Chapter 2 in Hindi ||

राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions || Class 11 Hindi (Vitan) Chapter 2 in Hindi ||

Posted on January 28, 2023January 28, 2023 by Anshul Gupta

पाठ – 2

राजस्थान की रजत बूँदें

In this post we have mentioned all the important questions of class 11 Hindi (Vitan) chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 11 के हिंदी (वितान) के पाठ 2 राजस्थान की रजत बूँदें  के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
Subjectहिंदी (वितान)
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameभारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर
CategoryClass 11 Hindi (Vitan) Important Questions
MediumHindi
Class 11 Hindi (Vitan) Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions

Chapter 2 राजस्थान की रजत बूंदें

प्रश्न 1: राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?

उत्तर – राजस्थान के रेतीले इलाके में पीने के पानी की बड़ी भारी समस्या है। वहाँ जमीन के नीचे खड़िया की कठोर परत को तलाशकर उसके ऊपर गहरी खुदाई की जाती है और विशेष प्रकार से चिनाई की जाती है। इस चिनाई के बाद खडिया की पट्टी पर रेत के कणों में रिस-रिसकर जल एकत्र हो जाता है। इस पेय जल आपूर्ति के साधन को कुंई कहते हैं। इसका व्यास बहुत छोटा और गहराई तीस-पैंतीस हाथ के लगभग होता है। कुओं की तुलना में इसका व्यास और गहराई बहुत ही कम है। राजस्थान में कुओं की गहराई डेढ़ सौ/दो सौ हाथ होती है और कुआँ भू-जल को पाने के लिए बनता है। उस पर उसका पानी भी खारा होता है। कुंई इससे बिलकुल अलग कम गहरी, संकरे व्यासवाली होती है। इसका जल खड़िया की पट्टी पर रिस-रिसकर गिरनेवाला जल है। यह जल मीठा, शुद्ध और रेगिस्तान के मूल निवासियों द्वारा खोजा गया अमृत है।

प्रश्न 2: दिनोंदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपको कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें?

उत्तर – मानव की दोहन नीति के कारण आज पानी की समस्या भयंकर होती जा रही है, नदियों का जल-स्तर घटता जा रहा है। शहरों व गाँवों में पेयजल की भारी कमी हो रही है। यह पाठ हमें पानी के समुचित प्रयोग को सिखाता है। अगर हम वर्षा के बूंद-बूंद पानी का उचित संग्रहण व इस्तेमाल कर सकें तो पानी की समस्या दूर हो जाए। आज हम पानी का दुरुपयोग करते हैं। कोई व्यक्ति भविष्य की चिंता नहीं करता। खेती, उद्योग, निजी उपयोग हर जगह लापरवाही है। हमें प्रकृति के उपहार वर्षा के जल का संग्रहण करना चाहिए। इसके लिए गाँवों में तालाब का पुनर्निर्माण करना चाहिए। घरों में भी कुएँ बनाकर पानी का संग्रहण किया जा सकता है। छोटे-छोटे जलाशय बनाकर भूमिगत जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है

प्रश्न 3: चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है पाठ के आधार पर बताइए?

उत्तर – चेजारों को खासकर कुंई बनानेवाले चेजारों का राजस्थान के समाज में बड़ा की महत्त्वपूर्ण स्थान है। अन्नदाता से भी बड़ा अमृतदाता (पानी देनेवाला) है-चेजारा। यह गाँव-समाज के लिए मीठे पानी की कुंई बनाता है अर्थात् सबकी प्यास बुझाता है। खुदाई और चिनाई की जो विशेष प्रक्रिया वह जानता है उसकी-सी जानकारी अन्य किसी के पास नहीं है। कुंई की खुदाई के पहले दिन से ही चेजारो का विशेष ध्यान रखा जाता है। कुंई की सफलता और सजलता के बाद चेजारों की विदाई पर विशेष भोज का आयोजन कर उन्हें तरह-तरह की भेंट दी जाती है। वर्ष-भर हर तीज-त्योहार पर उनको भेंट एवं उपहार दिए जाते हैं। फ़सल आने पर खलिहानों में उनके नाम से अनाज का अलग ढेर लगाया जाता है। ये सब पारंपरिक बातें अब कम होती जा रही हैं और मजदूरी देकर काम करवाने का रिवाज़ पनपता जा रहा है।

प्रश्न 4: निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुड़यों पर ग्राम-समाज का अकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर – राजस्थान में खड़िया पत्थर की पट्टी पर ही कुंइयों का निर्माण किया जाता है। कुंई का निर्माण ग्राम-समाज की सार्वजनिक जमीन पर होता है, परंतु उसे बनाने और उससे पानी लेने का हक उसका अपना हक है। सार्वजनिक जमीन पर बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष-भर नमी की तरह सुरक्षित रहता है। इसी नमी से साल भर कुंइयों में पानी भरता है। नमी की मात्रा वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो जाती है। अत: उस क्षेत्र में हर नई कुंई का अर्थ है-पहले से तय नमी का बँटवारा। इस कारण निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर ग्राम-समाज का अंकुश लगा रहता है। यदि यह अंकुश न हो तो लोग घर-घर कई-कई कुंई बना लेंगे और सबको पानी नहीं मिलेगा। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।

प्रश्न 5: कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें-पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।

उत्तर – पालरपानी-बरसाती पानी, वर्षा का जल जिसे इकट्ठा करके रख लिया जाता है और साफ़ करके प्रयोग में लाया जाता है। पातालपानी–वह जल जो दो सौ हाथ नीचे पाताल में मिलता है। यह जल ज्यादातर खारा होता है। रेजाणीपानी-रेत के कणों की गहराई में खड़िया की पट्टी के ऊपर कुंई में रिस-रिसकर एकत्र होनेवाला पानी रेजाणीपानी कहलाता है।

मूल्यपरक प्रश्न

निम्नलिखित गदयाशों को पढ़कर पूछे गए मूल्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कुंई की गहराई में चल रहे मेहनती काम पर वहाँ की गरमी का असर पड़ेगा। गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे फिकाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गरम हवा ऊपर लौटती है। इतने ऊपर से फेंकी जा रही रेत के कण नीचे काम कर रहे चेलवांजी के सिर पर लग सकते हैं इसलिए वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुए हैं। नीचे थोड़ी खुदाई हो जाने के बाद चेलवांजी के पंजों के आसपास मलबा जमा हो गया है। ऊपर रस्सी से एक छोटा-सा डोल या बाल्टी उतारी जाती है। मिट्टी उसमें भर दी जाती है। पूरी सावधानी के साथ ऊपर खींचते समय भी बाल्टी में से कुछ रेत, कंकड़-पत्थर नीचे गिर सकते हैं। टोप इनसे भी चेलवांजी का सिर बचाएगा।

प्रश्न

1. वैश्विक तापमान वृदधि रोकने में आप अपना योगदान किस प्रकार दे सकते हैं? 2

2. चेलवांजी कौन हैं? उनके व्यक्तित्व से आप कौन-कौन से मूल्य ग्रहण कर सकते हैं? 2

3. अपना सिर बचाए रखने के लिए चेलवांजी को आप क्या-क्या उपाय बता सकते हैं? 1

उत्तर –

1. वैश्विक तापमान रोकने के लिए हम अनेक प्रकार से अपना योगदान दे सकते हैं; जैसे

  • खाली जगहों में अधिकाधिक पेड़ लगाकर एवं उनकी रक्षा के लिए लोगों को प्रेरित करके।
  • पेड़ों की अंधाधुंध कटान रोकने के लिए लोगों में जन-जागरूकता फैलाकर।
  • कूड़ा-करकट एवं पेड़ों की सूखी पत्तियाँ व टहनियाँ न जलाने के लिए जन-जागरूकता फैलाकर।
  • पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए लोगों को जागरूक बनाकर।

2. चेलवांजी अत्यंत परिश्रमी एवं कुशल कारीगर हैं जो कुंई बनाते हैं। इनके व्यक्तित्व से हम परिश्रमशीलता, कार्य में निपुणता, लगन, सामूहिकता, परोपकार जैसे मूल्य ग्रहण कर सकते हैं।

3. चेलवांजी को सिर बचाए रखने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय बता सकता हूँ

  • सिर पर कपड़े की पगड़ी बाँधे।
  • घास या पत्तियों की मोटी परत की टोपी बनाकर सिर पर धारण करें।

(ख) कुंई एक और अर्थ में कुएँ से बिलकुल अलग है। कुआँ भूजल को पाने के लिए बनता है पर कुंई भूजल से ठीक वैसे नहीं जुड़ती जैसे कुआँ जुड़ता है। कुंई वर्षा के जल को बड़े विचित्र ढंग से समेटती है-तब भी जब वर्षा ही नहीं होती! यानी कुंई में न तो सतह पर बहने वाला पानी है, न भूजल है। यह तो ‘नेति-नेति’ जैसा कुछ पेचीदा मामला है। मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। यहाँ वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो उसे भूमि में समा जाने में देर नहीं लगती। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहाँ भी है, काफी लंबी-चौड़ी है पर रेत के नीचे दबी रहने के कारण ऊपूर से दिखती नहीं है।

प्रश्न

1. अपने आसपास जल का प्रदूषण एवं अपव्यय रोकने के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?

2. भू-जल स्तर गिरने का क्या कारण है? इसके प्रति आप लोगों को कैसे जागरूक कर सकते हैं?

3. वर्षा के जल का संग्रह करने के लिए आप क्या-क्या उपाय अपनाएँगे?

उत्तर –

1. जल का प्रदूषण एवं अपव्यय रोकने के लिए हम-

  • जल स्रोतों को गंदा न करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाएँगे।
  • पानी की टोटियों, टूटी पाइपों से बहते पानी को रोकने के लिए लोगों का ध्यान आकृष्ट करेंगे।
  • बरसात के पानी को नालियों में बहने से रोकने का उपाय करेंगे।
  • फैक्ट्रियों का दूषित जल नदी-झीलों में न प्रवाहित होने देने के लिए अभियान छेड़ेंगे।

2. लगातार भू-जल का दोहन तथा कम वर्षा के कारण भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। इसे रोकने के लिए मैं भू-जल का दोहन कम करने की सलाह दूँगा तथा वर्षा-जल को छतों पर रोककर गहरे गड्ढों में उतारने के लिए प्रेरित करूंगा। ताकि पानी रिसकर जमीन में समा सके। इसके अलावा कृषि प्रणाली में सुधार तथा कम पानी चाहने वाली फसलें उगाने के लिए जागरूकता फैलाऊँगा।

3. वर्षा के जल का संग्रह करने के लिए मैं लोगों को अधिक से अधिक तालाब बनाने और पुराने तलाबों की सफाई करने के लिए प्रेरित करूंगा। साथ ही लोगों से अनुरोध करूंगा कि वे अपनी-अपनी छतों पर टंकी बनाकर वर्षा के पानी को संग्रह करें और भाप बनकर उड़ने से पहले सुरक्षित उन्हें जमीन पर उतारें।

(ग) पर यहाँ बिखरे रहने में ही संगठन है। मरुभूमि में रेत के कण समान रूप से बिखरे रहते हैं। यहाँ परस्पर लगाव नहीं, इसलिए अलगाव भी नहीं होता। पानी गिरने पर कण थोड़े भारी हो जाते हैं पर अपनी जगह नहीं छोड़ते। इसलिए मरुभूमि में धरती पर दरारें नहीं पड़तीं। भीतर समाया वर्षा का जल भीतर ही बना रहता है। एक तरफ थोड़े नीचे चल रही पट्टी इसकी रखवाली करती है तो दूसरी तरफ ऊपर रेत के असंख्य कणों का कड़ा पहरा बैठा रहता है। इस हिस्से में बरसी बूंद-बूंद रेत में समा कर नमी में बदल जाती है। अब यहाँ कुंई बन जाए तो उसका पेट, उसकी खाली जगह चारों तरफ रेत में समाई नमी को फिर से बूंदों में बदलती है। बूंद-बूंद रिसती है और कुंई में पानी जमा होने लगता है-खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा पानी।

प्रश्न

1. पानी की बढ़ती समस्या से निपटने में यह गदयांश आपकी मदद कैसे कर सकता है? लिखिए।

2. धरती में नीचे चल रही पट्टी पानी की रखवाली करती है। आप भूमिगत जलस्तर को बचाए रखने के लिए क्या-क्या करेंगे?

3. यह गदयांश आपके लिए क्या संदेश छोड़ जाता है?

उत्तर –

1. पानी की समस्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। इसका भीषण रूप हमें गर्मियों में देखने को मिलता है। यह गद्यांश हमें पानी को संरक्षित करने, व्यर्थ में बर्बाद न करने तथा प्रदूषित न करने की सीख दे जल समस्या से निपटने में हमारी मदद करता है।

2. धरती में चल रही पट्टी जिस तरह भूमिगत जल की रखवाली करती है उसी प्रकार इसे बनाए रखने के लिए मैं वर्षा के जल को जमीन में उतारने का प्रयास करूंगा तथा भू-जल दोहन को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करूगा।

3. यह गद्यांश पानी को बचाए रखने बनाए रखने तथा प्रदूषित होने से बचाने का संदेश छोड़ जाता है। संक्षेप में जल ही जीवन है।

(घ) कुंई की सफलता यानी सजलता उत्सव का अवसर बन जाती है। यों तो पहले दिन से काम करने वालों का विशेष ध्यान रखना यहाँ की परंपरा रही है, पर काम पूरा होने पर तो विशेष भोज का आयोजन होता था। चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी। चेजारो के साथ गाँव का यह संबंध उसी दिन नहीं टूट जाता था। आच प्रथा से उन्हें वर्ष-भर के तीज-त्योहारों में, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग, भेंट दी जाती और फसल आने पर खलियान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था। अब सिर्फ मजदूरी देकर भी काम करवाने का रिवाज आ गया है।

प्रश्न

1. आपके विचार से कुंई की सफलता उत्सव का अवसर क्यों बन जाती है? लिखिए।

2. सजलता बनाए रखने के लिए आप लोगों को जागरूक करने के लिए क्या-क्या करेंगे?

3. आच प्रथा बनाए रखने के विषय में आपकी क्या राय है? इस प्रथा से आपको क्या सीख मिलती है?

उत्तर –

1. राजस्थान में जहाँ के लोगों को पानी की भीषण कमी का सामना करना पड़ता है वहाँ कुंई लोगों को अमृत के समान मीठा पानी देती है और ‘जल ही जीवन है’ को चरितार्थ करती है। इसलिए कुंई की सफलता उत्सव मनाने जैसा अवसर बन जाता है।

2. सजलता बनाए रखने के लिए हम लोगों को पानी बर्बाद न करने, अत्यधिक वृक्ष लगाने, वृक्षों को कटने से बचाने तथा वर्षा का जल बचाने के लिए लोगों को जागरूक करेंगे।

3. मेरी राय में आच प्रथा बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। यह प्रथा जहाँ सामाजिक समरसता बढ़ाने का काम करती है, वहीं चेलवांजी जैसे कलाकारों का सम्मान एवं स्वाभिमान बनाए रखती है। यह प्रथा ऐसी कलाओं को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है।

(ड) निजी और सार्वजनिक संपत्ति का विभाजन करने वाली मोटी रेखा कुंई के मामले में बड़े विचित्र ढंग से मिट जाती है। हरेक की अपनी-अपनी कुंई है। उसे बनाने और उससे पानी लेने का हक उसका अपना हक है। लेकिन कुंई जिस क्षेत्र में बनती है, वह गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन है। उस जगह बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष-भर नमी की तरह सुरक्षित रहेगा और इसी नमी से साल-भर कुंइयों में पानी भरेगा। नमी की मात्रा तो वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो गई है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली हर नई कुंई का अर्थ है, पहले से तय नमी का बँटवारा। इसलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।

प्रश्न

1. कुंइयों पर ग्राम-समाज के नियंत्रण को आप कितना सही मानते हैं और क्यों? लिखिए।

2. ‘गोधूलि बेला में कुंइयों के आसपास की नीरवता मुखरित हो उठती हैं”-के आलोक में बताइए कि कुंइयाँ समाज में किन मूल्यों को जीवित रखे हुए हैं और कैसे? 

3. पानी की समस्या कम करने में आप अपना योगदान कैसे दे सकते हैं?

उत्तर –

1. कुंइयों पर ग्राम-समाज के नियंत्रण को मैं पूर्णतया सही मानता हूँ। ग्राम-समाज द्वारा इन कुंइयों पर अपना नियंत्रण रखने से उस अमृत तुल्य जल का लोगों में समान बँटवारा हो जाता है। ऐसा न होने पर वहाँ सबलों का आधिपत्य स्थापित होगा और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति होगी।

2. गोधूलि बेला से पूर्व कुंइयों के आसपास नीरवता छाई रहती है किंतु इस बेला में यहाँ पानी लेने औरतें या पुरुष आ जाते हैं। कुंइयों के मुँह पर लगी घिरनियों का मधुर संगीत गूँज उठता है। लोग पानी लेते हैं और कुंइयों को अगले दिन तक के लिए बंद कर दिया जाता है। इस प्रकार ये कुंइयाँ सामाजिक समरसता, समानता सहयोग तथा पारस्परिकता जैसे मूल्यों को जीवित रखे हुई हैं।

3. पानी की समस्या को कम करने के लिए मैं जल के अपव्यय को रोककर, अधिकाधिक वृक्ष लगाकर तथा पानी को कई प्रकार से (जैसे-सब्जियाँ धोकर उसी पानी को पौधों में डालना) उपयोग कर अपना योगदान दे सकता हूँ।

निबधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: कुंई की निर्माण प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – मरुभूमि में कुंई के निर्माण का कार्य चेलवांजी यानी चेजार करते हैं। वे खुदाई व विशेष तरह की चिनाई करने में दक्ष होते हैं। कुंई बनाना एक विशिष्ट कला है। चार-पाँच हाथ के व्यास की कुंई को तीस से साठ-पैंसठ हाथ की गहराई तक उतारने वाले चेजारो कुशलता व सावधानी के साथ पूरी ऊँचाई नापते हैं। चिनाई में थोड़ी-सी भी चूक चेजारो के प्राण ले सकती है। हर दिन थोड़ी-थोड़ी खुदाई होती है, डोल से मलवा निकाला जाता है और फिर आगे की खुदाई रोककर अब तक हो चुके काम की चिनाई की जाती है ताकि मिट्टी धैसे नहीं।

बीस-पच्चीस हाथ की गहराई तक जाते-जाते गर्मी बढ़ती जाती है और हवा भी कम होने लगती है। तब ऊपर से मुट्ठी-भरकर रेत तेजी से नीचे फेंकी जाती है ताकि ताजा हवा नीचे जा सके और गर्म हवा बाहर आ सके। चेजार सिर पर काँसे, पीतल या किसी अन्य धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहनते हैं ताकि ऊपर से रेत, कंकड़-पत्थर से उनका बचाव हो सके। किसी-किसी स्थान पर ईट की चिनाई से मिट्टी नहीं रुकती तब कुंई को रस्से से बाँधा जाता है। ऐसे स्थानों पर कुंई खोदने के साथ-साथ खींप नामक घास का ढेर लगाया जाता है। खुदाई शुरू होते ही तीन अंगुल मोटा रस्सा बनाया जाता है।

एक दिन में करीब दस हाथ की गहरी खुदाई होती है। इसके तल पर दीवार के साथ सटाकर रस्से का एक के ऊपर एक गोला बिछाया जाता है और रस्से का आखिरी छोर ऊपर रहता है। अगले दिन फिर कुछ हाथ मिट्टी खोदी जाती है और रस्से की पहली दिन जमाई गई कुंडली दूसरे दिन खोदी गई जगह में सरका दी जाती है। बीच-बीच में जरूरत होने पर चिनाई भी की जाती है। कुछ स्थानों पर पत्थर और खींप नहीं मिलते। वहाँ पर भीतर की चिनाई लकड़ी के लंबे लट्ठों से की जाती है लट्ठे अरणी, बण, बावल या कुंबट के पेड़ों की मोटी टहनियों से बनाए जाते हैं। इस काम के लिए सबसे अच्छी लकड़ी अरणी की है, परंतु इन पेड़ों की लकड़ी न मिले तो आक तक से भी काम किया जाता है। इन पेड़ों के लट्ठे नीचे से ऊपर की ओर एक-दूसरे में फैसा कर सीधे खड़े किए जाते हैं। फिर इन्हें खींप की रस्सी से बाँधा जाता है। यह बँधाई कुंडली का आकार लेती है। इसलिए इसे साँपणी कहते हैं। खड़िया पत्थर की पट्टी आते ही काम रुक जाता है और इस क्षण नीचे धार लग जाती है। चेजारो ऊपर आ जाते हैं कुंई बनाने का काम पूरा हो जाता है।

प्रश्न 2: कुंई का मुँह छोटा क्यों रखा जाता है? स्पष्ट करें?

उत्तर – कुंई का मुँह छोटा रखा जाता है। इसके तीन कारण प्रमुख हैं

  • रेत में जमी नमी से पानी की बूंदें धीरे-धीरे रिसती हैं। दिनभर में एक कुंई में मुश्किल से दो-तीन घड़े पानी जमा होता है। कुंई के तल पर पानी की मात्रा इतनी कम होती है कि यदि कुंई का व्यास बड़ा हो तो कम मात्रा का पानी ज्यादा फैल जाएगा। ऐसी स्थिति में उसे ऊपर निकालना संभव नहीं होगा। छोटे व्यास की कुंई में धीरे-धीरे रिस कर आ रहा पानी दो-चार हाथ की ऊँचाई ले लेता है।
  • कुंई के व्यास का संबंध इन क्षेत्रों में पड़ने वाली तेज गर्मी से भी है। व्यास बड़ा हो तो कुंई के भीतर पानी ज्यादा फैल जाएगा और भाप बनकर उड़ने से रोक नहीं पाएगा।
  • कुंई को और उसके पानी को साफ रखने के लिए उसे ढककर रखना जरूरी है। छोटे मुँह को ढकना सरल होता है। कुंई पर लकड़ी के ढक्कन, खस की पट्टी की तरह घास-फूस या छोटी-छोटी टहनियों से बने ढक्कनों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3: ‘राजस्थान में जल संग्रह के लिए बनी कुंई किसी वैज्ञानिक खोज से कम नहीं है।” स्पष्ट करें।

उत्तर – यह बात बिल्कुल सही है कि राजस्थान में जल संग्रह के लिए बनी कुंई किसी वैज्ञानिक खोज से कम नहीं है। मरुभूमि में चारों तरफ अथाह रेत है। वर्षा भी कम होती है। भूजल खारा होता है। ऐसी स्थिति में जल की खोज, उसे निकालना आदि सब कुछ वैज्ञानिक तरीके से हो सकता है। मरुभूमि के भीतर खड़िया की पट्टी को खोजने में भी पीढ़ियों का अनुभव काम आता है। जिस स्थान पर वर्षा का पानी एकदम न बैठे, उस स्थान पर खड़िया पट्टी पाई जाती है। कुंई के जल को पाने के लिए मरुभूमि के समाज ने खूब मंथन किया तथा अनुभवों के आधार पर पूरा शास्त्र विकसित किया।

कुंई खोदने में वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। चेजारो के सिर पर धातु का बर्तन उसे चोट से बचाता है। ऊपर से रेत फेंकने से ताजा हवा नीचे जाती है तथा गर्म हवा बाहर निकलती है, फिर कुंई की चिनाई भी पत्थर, ईट, खींप की रस्सी या अरणी के लट्ठों से की जाती है। यह खोज आधुनिक समाज को चमत्कृत करती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:कुंई की खुदाई किससे की जाती है?

उत्तर – कुंई का व्यास बहुत कम होता है। इसलिए इसकी खुदाई फावड़े या कुल्हाड़ी से नहीं की जा सकती। बसौली से इसकी खुदाई की जाती है। यह छोटी डंडी का छोटे फावड़े जैसा औजार होता है जिस पर लोहे का नुकीला फल तथा लकड़ी का हत्था लगा होता है।

प्रश्न 2: कुंई की खुदाई के समय ऊपर जमीन पर खड़े लोग क्या करते हैं?

उत्तर – कुंई की खुदाई के समय गहराई बढ़ने के साथ-साथ गर्मी बढ़ती जाती है। उस गर्मी को कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे की तरफ जाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गर्म हवा ऊपर लौटती है। इससे चेलवांजी को गर्मी से राहत मिलती है।

प्रश्न 3: खड़िया पत्थर की पट्टी कहाँ चलती है?

उत्तर – मरुभूमि में रेत का विस्तार व गहराई अथाह है। यहाँ अधिक वर्षा भी भूमि में जल्दी जमा हो जाती है। कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी लंबी-चौड़ी होती है, परंतु रेत में दबी होने के कारण दिखाई नहीं देती।

प्रश्न 4: खड़िया पत्थर की पट्टी का क्या फायदा है?

उत्तर – खड़िया पत्थर की पट्टी वर्षा के जल को गहरे खारे भूजल तक जाकर मिलने से रोकती है। ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में बरसा पानी भूमि की रेतीली सतह और नीचे चल रही पथरीली पट्टी के बीच अटक कर नमी की तरह फैल जाता है।

प्रश्न 5: खड़िया पट्टी के अलग-अलग क्या नाम हैं?

उत्तर – खड़िया पट्टी के कई स्थानों पर अलग-अलग नाम हैं। कहीं यह चारोली है तो कहीं धाधड़ी, धड़धड़ी, कहीं पर बिट्टू रो बल्लियो के नाम से भी जानी जाती है तो कहीं इस पट्टी का नाम केवल ‘खड़ी’ भी है।

प्रश्न 6: कुंई के लिए कितने रस्से की जरूरत पड़ती है?

उत्तर – लेखक बताता है कि लगभग पाँच हाथ के व्यास की कुंई में रस्से की एक ही कुंडल का सिर्फ एक घेरा बनाने के लिए लगभग पंद्रह हाथ लंबा रस्सा चाहिए। एक हाथ की गहराई में रस्से के आठ-दस लपेटे लग जाते हैं। इसमें रस्से की कुल लंबाई डेढ़ सौ हाथ हो जाती है। यदि तीस हाथ गहरी कुंई की मिट्टी को थामने के लिए रस्सा बाँधना पड़े तो रस्से की लंबाई चार हजार हाथ के आसपास बैठती है।

प्रश्न 7: रेजाणीपानी की क्या विशेषता है? ‘रेजा’ शब्द का प्रयोग किसलिए किया जाता है?

उत्तर – रेजाणीपानी पालरपानी और पातालपानी के बीच पानी का तीसरा रूप है। यह धरातल से नीचे उतरता है, परंतु पाताल में नहीं मिलता। इस पानी को कुंई बनाकर ही प्राप्त किया जाता है। ‘रेजा’ शब्द का प्रयोग वर्षा की मात्रा नापने के लिए किया जाता है। यह माप धरातल में समाई वर्षा को नापता है। उदाहरण के लिए यदि मरुभूमि में वर्षा का पानी छह अंगुल रेत के भीतर समा जाए तो उस दिन की वर्षा को पाँच अंगुल रेजा कहेंगे।

प्रश्न 8:कुंई से पानी कैसे निकाला जाता है?

उत्तर – कुंई से पानी चड़स के द्वारा निकाला जाता है। यह मोटे कपड़े या चमड़े की बनी होती है। इसके मुँह पर लोहे का वजनी कड़ा बँधा होता है। आजकल ट्रकों की फटी ट्यूब से भी छोटी चड़सी बनने लगी है। चडस पानी से टकराता है तथा ऊपर का वजनी भाग नीचे के भाग पर गिरता है। इस तरह कम मात्रा के पानी में भी वह ठीक तरह से डूब जाती है। भर जाने के बाद ऊपर उठते ही चड़स अपना पूरा आकार ले लेता है।

प्रश्न 9: गहरी कुंई से पानी खींचने का क्या प्रबंध किया जाता है?

उत्तर – गहरी कुंई से पानी खींचने के लिए उसके ऊपर घिरनी या चकरी लगाई जाती है। यह गरेडी, चरखी या फरेड़ी भी कहलाती है। ओड़ाक और चरखी के बिना गहरी व संकरी कुंई से पानी निकालना कठिन काम होता है। ओड़ाक और चरखी चड़सी को यहाँ-वहाँ टकराए बिना सीधे ऊपर तक लाती है। इससे वजन खींचने में भी सुविधा रहती है।

प्रश्न 10: गोधूलि के समय कुंइयों पर कैसा वातावरण होता है?

उत्तर – गोधूलि बेला में प्राय: पूरा गाँव कुंइयों पर आता है। उस समय-मेला सा लगता है। गाँव से सटे मैदान में तीस-चालीस कुंइयों पर एक साथ घूमती घिरनियों का स्वर गोचर से लौट रहे पशुओं की घंटियों और रंभाने की आवाज में समा जाता है। दो-तीन घड़े भर जाने पर डोल और रस्सियाँ समेट ली जाती हैं।

प्रश्न 11: राजस्थान के रेत की विशेषता बताइए।

उत्तर – राजस्थान में रेत के कण बारीक होते हैं। वे एक-दूसरे से चिपकते नहीं है। आमतौर पर मिट्टी के कण एक-दूसरे से चिपक जाते हैं तथा मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से नमी गर्मी में वाष्प बन जाती है। रेत के कण बिखरे रहते हैं। अत: उनमें दरारें नहीं पड़तीं और अंदर की नमी अंदर ही रहती है। यह नमी ही कुंइयों के लिए पानी का स्रोत बनती है।

We hope that class 11 Hindi (Vitan) Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions in Hindi helped you. If you have any queries about class 11 Hindi (Vitan) Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें Important Questions in Hindi or about any other Important Questions of class 11 Hindi (Vitan) in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible.

हमें उम्मीद है कि कक्षा 11 हिंदी (वितान) अध्याय 2 राजस्थान की रजत बूँदें हिंदी के महत्वपूर्ण प्रश्नों ने आपकी मदद की। यदि आपके पास कक्षा 11 हिंदी (वितान) अध्याय 2 राजस्थान की रजत बूँदें के महत्वपूर्ण प्रश्नो या कक्षा 11 के किसी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न, नोट्स, वस्तुनिष्ठ प्रश्न, क्विज़, या पिछले वर्ष के प्रश्नपत्रों के बारे में कोई सवाल है तो आप हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं या नीचे comment कर सकते हैं। 

Category: Class 11 Hindi Important Questions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Free WhatsApp Group

Free Telegram Group

Our Application

Class 12

  • Class 12 All Video Courses
  • Class 12 All Important Notes 
  • Class 12 All Important Questions
  • Class 12 All Important Quizzes
  • Class 12 All Important Objective Questions
  • Class 12 All Sample Papers
  • Class 12 All Last Year Questions Papers
  • Class 12 All PDF E-books

Class 11

  • Class 11 All Video Courses
  • Class 11 All Important Notes 
  • Class 11 All Important Questions
  • Class 11 All Important Quizzes
  • Class 11 All Important Objective Questions
  • Class 11 All Sample Papers
  • Class 11 All Last Year Questions Papers
  • Class 11 All PDF E-books

Class 10

  • Class 10 All Video Courses
  • Class 10 All Important Notes 
  • Class 10 All Important Questions
  • Class 10 All Important Quizzes
  • Class 10 All Important Objective Questions
  • Class 10 All Sample Papers
  • Class 10 All Last Year Questions Papers
  • Class 10 All PDF E-books

More Important Questions

  • Class 10 Hindi Important Questions (42)
  • Class 10 Important Questions (0)
  • Class 10 Math Important Questions in Hindi (0)
  • Class 10 Science Important Questions in Hindi (0)
  • Class 10 SST Important Questions in Hindi (25)
  • Class 11 Economics Important Questions in Hindi (0)
  • Class 11 Geography Important Questions in Hindi (23)
  • Class 11 Hindi Important Questions (45)
  • Class 11 History Important Questions in Hindi (1)
  • Class 11 Important Questions (0)
  • Class 11 Physical Education Important Questions in Hindi (0)
  • Class 11 Political Science Important Questions in Hindi (40)
  • Class 11 Sociology Important Questions in Hindi (0)
  • Class 12 Economics Important Questions in Hindi (0)
  • Class 12 Geography Important Questions in Hindi (22)
  • Class 12 Hindi Important Questions (47)
  • Class 12 History Important Questions in Hindi (13)
  • Class 12 Important Questions (0)
  • Class 12 Physical Education Important Questions in Hindi (0)
  • Class 12 Political Science Important Questions in Hindi (18)
  • Class 12 Sociology Important Questions in Hindi (1)
  • Class 9 Hindi Important Questions (41)
  • Class 9 Important Questions (0)
  • Class 9 Math Important Questions in Hindi (0)
  • Class 9 Science Important Questions in Hindi (0)
  • Class 9 SST Important Questions in Hindi (0)
  • Uncategorized (0)

Other Important Questions

  • डायरी के पन्ने Important Questions || Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 4 in Hindi ||
  • अतीत में दबे पाँव Important Questions || Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 3 in Hindi ||
  • जूझ Important Questions || Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 2 in Hindi ||
  • सिल्वर वैडिंग Important Questions || Class 12 Hindi (Vitan) Chapter 1 in Hindi ||
  • श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 18 in Hindi ||
  • शिरीष के फूल Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 17 in Hindi ||
  • नमक Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 16 in Hindi ||
  • चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 15 in Hindi ||
  • पहलवान की ढोलक Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 14 in Hindi ||
  • काले मेघा पानी दे Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 13 in Hindi ||
  • बाजार दर्शन Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 12 in Hindi ||
  • भक्तिन Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 11 in Hindi ||
  • छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 10 in Hindi ||
  • रुबाइयाँ, गज़ल Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 9 in Hindi ||
  • कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 8 in Hindi ||
  • बादल राग Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 7 in Hindi ||
  • उषा Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 6 in Hindi ||
  • सहर्ष स्वीकारा है Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 5 in Hindi ||
  • कैमरे में बंद अपाहिज Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 4 in Hindi ||
  • कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 3 in Hindi ||
  • पतंग Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 2 in Hindi ||
  • आत्म-परिचय, एक गीत Important Questions || Class 12 Hindi (Aroh) Chapter 1 in Hindi ||
© 2025 Criss Cross Classes | Powered by Minimalist Blog WordPress Theme