पाठ – 3
अपू के साथ ढाई साल
In this post we have mentioned all the important questions of class 11 Hindi (Aroh) chapter 3 अपू के साथ ढाई साल in Hindi
इस पोस्ट में कक्षा 11 के हिंदी (आरोह) के पाठ 3 अपू के साथ ढाई साल के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | हिंदी (आरोह) |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | अपू के साथ ढाई साल |
Category | Class 11 Hindi (Aroh) Important Questions |
Medium | Hindi |
Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल
प्रश्न 1: पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
उत्तर- ‘पथेर पांचाली’ फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला। इसके कारण निम्नलिखित थे
- लेखक को पैसे का अभाव था। पैसे इकट्ठे होने पर ही वह शूटिंग करता था।
- वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। इसलिए काम से फुर्सत होने पर ही लेखक तथा अन्य कलाकार फिल्म का काम करते थे।
- तकनीक के पिछड़ेपन के कारण पात्र, स्थान, दृश्य आदि की समस्याएँ आ जाती थीं।
प्रश्न 2: अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती-इस कथन के पीछे क्या भाव है?
उत्तर- इसके पीछे भाव यह है कि कोई भी फिल्म हमें तभी प्रभावित कर पाती है जब उसमें निरंतरता हो। यदि एक दृश्य में ही एकरूपता नहीं होती तो फिल्म कैसे चल पाती। दर्शक भ्रमित हो जाता है। पथेर पांचाली फ़िल्म में काशफूलों के साथ शूटिंग पूरी करनी थी, परंतु एक सप्ताह के अंतराल में पशु उन्हें खा गए। अत: उसी पृष्ठभूमि में दृश्य चित्रित करने के लिए एक वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। यदि यह आधा दृश्य काशफूलों के बिना चित्रित किया जाता तो दृश्य में निरंतरता नहीं बन पाती।
प्रश्न 3: किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर-
- प्रथम दृश्य- इस दृश्य में ‘भूलो’ नामक कुत्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में डाले गए भात को खाते हुए चित्रित करना था, परंतु सूर्य के अस्त होने तथा पैसे खत्म होने के कारण यह दृश्य चित्रित न हो सका। छह महीने बाद लेखक पुन: उस स्थान पर गया तब तक उस कुत्ते की मौत हो चुकी थी। काफी प्रयास के बाद उससे मिलता-जुलता कुत्ता मिला और उसी से भात खाते हुए दृश्य को फ़िल्माया गया। यह दृश्य इतना स्वाभाविक था कि कोई भी दर्शक उसे पहचान नहीं पाया।
- दूसरा दृश्य- इस दृश्य में श्रीनिवास नामक व्यक्ति मिठाई वाले की भूमिका निभा रहा था। बीच में शूटिंग रोकनी पड़ी। दोबारा उस स्थान पर जाने से पता चला कि उस व्यक्ति का देहांत हो गया है, फिर लेखक ने उससे मिलते-जुलते व्यक्ति को लेकर बाकी दृश्य फ़िल्माया। पहला श्रीनिवास बाँस वन से बाहर आता है और दूसरा श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। इस प्रकार इस दृश्य में दर्शक अलग-अलग कलाकारों की पहचान नहीं पाते।
प्रश्न 4: ‘भूलो’ की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
उत्तर- भूलो की मृत्यु हो गई थी, इस कारण उससे मिलता-जुलता कुत्ता लाया गया। फ़िल्म का दृश्य इस प्रकार था कि अप्पू की माँ उसे भात खिला रही थी। अपू तीर-कमान से खेलने के लिए उतावला है। भात खाते-खाते वह तीर छोड़ता है तथा उसे लाने के लिए भाग जाता है। माँ भी उसके पीछे दौड़ती है। भूलो कुत्ता वहीं खड़ा सब कुछ देख रहा है। उसका ध्यान भात की थाली की ओर है। यहाँ तक का दृश्य पहले भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अपू की माँ बचा हुआ भात गमले में डाल देती है और भूलो वह भात खा जाता है। यह दृश्य दूसरे कुत्ते से पूरा किया गया।
प्रश्न 5: फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?
उत्तर- फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचने वाले की थी। उसके देहांत के बाद उसकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार ने तरकीब लगाई। नया – आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता है, अत: कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।
प्रश्न 6: बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर- फ़िल्मकार के पास पैसे का अभाव था, अत: बारिश के दिनों में शूटिंग नहीं कर सके। अक्टूबर माह तक उनके पास पैसे इकट्ठे हुए तो बरसात के दिन समाप्त हो चुके थे। शरद ऋतु में बारिश होना भाग्य पर निर्भर था। लेखक हर रोज अपनी टीम के साथ गाँव में जाकर बैठे रहते और बादलों की ओर टकटकी लगाकर देखते रहते। एक दिन उनकी इच्छा पूरी हो गई। अचानक बादल छा गए और धुआँधार बारिश होने लगी। फिल्मकार ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अपू का बारिश में भीगने वाला दृश्य शूट कर लिया। इस बरसात में भीगने से दोनों बच्चों को ठंड लग गई, परंतु दृश्य पूरा हो गया।
प्रश्न 7: किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबदध कीजिए।
उत्तर- किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
- धन की कमी।
- कलाकारों का चयन।
- कलाकारों के स्वास्थ्य, मृत्यु आदि की स्थिति।
- पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या।
- बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूँढ़ना।
- प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता।
- स्थानीय लोगो का हस्तक्षेप व असहयोग।
- संगीत।
- दृश्यों की निरंतरता हेतु भटकना।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1: तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दशक पहचान नहीं पाते कि… या फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि. इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है।
उत्तर- फ़िल्म शूटिंग के समय तीन प्रसंग प्रमुख हैं-
- भूलो कुत्ते के स्थान पर दूसरे कुत्ते को भूलो बनाकर प्रस्तुत किया गया।
- एक रेलगाड़ी के दृश्य को तीन रेलगाड़ियों से पूरा किया गया ताकि धुआँ उठने का दृश्य चित्रित किया जा सके। यह दृश्य काफी बड़ा था।
- श्रीनिवास का पात्र निभाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। अत: उसके स्थान पर मिलती-जुलती कद-काठी वाले व्यक्ति से मिठाई वाला दृश्य पूरा करवाया गया। हालाँकि उसकी पीठ दिखाकर काम चलाया गया। शूटिंग के समय अनेक तरह की दिक्कतें आती हैं, परंतु निरंतरता बनाए रखने के लिए बनावटी दृश्य डालने पड़ते हैं। दर्शक फ़िल्म के आनंद में डूबा होता है, अत: उसे छोटी-छोटी बारीकियों का पता नहीं चल पाता।
प्रश्न 3: पथेर पांचाली फ़िल्म में इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।
उत्तर- यदि इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी की मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय उससे मिलती-जुलती शक्ल की वृद्धा को ढूँढ़ते। यदि वह संभव नहीं हो पाता तो संकेतों के माध्यम से इस फिल्म में उसकी मृत्यु दिखाई जाती। कहानी में बदलाव किया जा सकता था।
प्रश्न 4: पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं?
उत्तर- यह बात पूर्णतया उचित है कि फ़िल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं। वे फिल्मों के दृश्यों के संयोजन में कोई लापरवाही नहीं बरतते। वे दृश्य को पूरा करने के लिए समय का इंतजार करते हैं। काशफूल वाले दृश्य में उन्होंने साल भर इंतजार किया। पैसे की तंगी के कारण वे परेशान हुए, परंतु उन्होंने किसी से पैसा नहीं माँगा। वे स्टूडियो के दृश्य की बजाय प्राकृतिक दृश्य फिल्माते थे। वे कला को साधन मानते थे।
भाषा की बात
प्रश्न 1: हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है। जैसे अपू के साथ ढाई साल पाठ में फिल्म से जुड़े शब्द शूटिंग, शॉट, सीन आदि। फिल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
उत्तर- ग्लैमर, लाइट्स, सीन, रिकार्डिंग, कैमरा, फिल्म, हॉलीवुड, कट, अभिनेता, एक्शन, डबिंग, रोल।
प्रश्न 2: नीचे दिए गए शब्दों के पर्याय इस पाठ में ढूँढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा
उत्तर-
(क) इश्तहार- विज्ञापन-आजकल अभिनेता व खिलाड़ी विज्ञापनों में छाए रहते हैं।
(ख) खुशकिस्मती- सौभाग्य-यह मेरा सौभाग्य है कि आप हमारे घर पधारे।
(ग) सीन- दृश्य-वाह! क्या दृश्य है।
(घ) वृष्टि- बारिश-मुंबई की बारिश ने प्रशासन की पोल खोल दी।
(ङ) जमा- इकट्ठा-सामान इकट्ठा कर ली, कल हरिद्वार जाना है।
बोधात्मक प्रशन
प्रश्न 1: ‘ अपू के साथ ढाई साल ‘ संस्मरण का प्रतिपादय बताइए।
उत्तर- अपू के साथ ढाई साल नामक संस्मरण पथेर पांचाली फ़िल्म के अनुभवों से संबंधित है जिसका निर्माण भारतीय फ़िल्म के इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। इससे फ़िल्म के सृजन और उनके व्याकरण से संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है। यही नहीं, जो फ़िल्मी दुनिया हमें अपने ग्लैमर से चुधियाती हुई जान पड़ती है, उसका एक ऐसा सच हमारे सामने आता है, जिसमें साधनहीनता के बीच अपनी कलादृष्टि को साकार करने का संघर्ष भी है। यह पाठ मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया है जिसका अनुवाद विलास गिते ने किया है।
किसी फिल्मकार के लिए उसकी पहली फ़िल्म एक अबूझ पहेली होती है। बनने या न बन पाने की अमूर्त शंकाओं से घिरी। फ़िल्म पूरी होने पर ही फ़िल्मकार जन्म लेता है। पहली फ़िल्म के निर्माण के दौरान हर फ़िल्म निर्माता का अनुभव संसार इतना रोमांचकारी होता है कि वह उसके जीवन में बचपन की स्मृतियों की तरह हमेशा जीवंत बना रहता है। इस अनुभव संसार में दाखिल होना उस बेहतरीन फ़िल्म से गुजरने से कम नहीं है।
प्रश्न 2: ‘वास्तुसर्प’ क्या होता है? इससे लेखक का कार्य कब प्रभावित हुआ?
उत्तर- वास्तुसर्प वह होता है जो घर में रहता है। लेखक ने एक गाँव में मकान शूटिंग के लिए किराये पर लिया। इसी मकान के कुछ कमरों में शूटिंग का सामान था। एक कमरे में साउंड रिकार्डिग होती थी जहाँ भूपेन बाबू बैठते थे। वे साउंड की गुणवत्ता बताते थे। एक दिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। जब लोग कमरे में पहुँचे तो साँप, कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। इसी डर से भूपेन ने जवाब नहीं दिया।
प्रश्न 3: सत्यजित राय को कौन-सा गाँव सर्वाधिक उपयुक्त लगा तथा क्यों?
उत्तर- सत्यजित राय को बोडाल गाँव शूटिंग के लिए सबसे उपयुक्त लगा। इस गाँव में अपू-दुर्गा का घर, अपू का स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट आदि सब कुछ गाँव में या आसपास मिला।
प्रश्न 4: लेखक को धोबी के कारण क्या परेशानी होती थी?
उत्तर- लेखक बोडाल गाँव के जिस घर में शूटिंग करता था, उसके पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह अकसर ‘भाइयो और बहनो!’ कहकर किसी राजनीतिक मामले पर लंबा-चौड़ा भाषण शुरू कर देता था। शूटिंग के समय उसके भाषण से साउंड रिकार्डिग का काम प्रभावित होता था। धोबी के रिश्तेदारों ने उसे सँभाला।
प्रश्न 5: पुराने मकान में शूटिंग करते समय फिल्मकार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आई?
उत्तर- पुराने मकान में शूटिंग करते समय फ़िल्मकार को निम्नलिखित कठिनाइयाँ आई-
- पुराना मकान खंडहर था। उसे ठीक कराने में काफी पैसा खर्च हुआ और एक महीना का वक्त लगा।
- मकान के एक कमरे में साँप निकल आया जिसे देखकर आवाज रिकार्ड करने वाले की बोलती बंद हो गई।
प्रश्न 6: ‘सुबोध दा’ कौन थे? उनका व्यवहार कैसा था?
उत्तर- ‘सुबोध दा’ 60-65 आयु का विक्षिप्त वृद्ध था। वह हर वक्त कुछ-न-कुछ बड़बड़ाता रहता था। पहले वह फ़िल्मवालों को मारने दौड़ता है, परंतु बाद में वह लेखक को वायलिन पर लोकगीतों की धुनें सुनाता है। वह आते-जाते व्यक्ति को रुजवेल्ट, चर्चिल, हिटलर, अब्दुल गफ्फार खान आदि कहता है। उसके अनुसार सभी पाजी और उसके दुश्मन हैं।
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