भू – आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions || Class 11 Geography Book 1 Chapter 6 in Hindi ||

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पाठ – 6

भू – आकृतिक प्रक्रियाएँ

In this post, we have mentioned all the important questions of class 11 Geography chapter 6 Geomorphic Processes in Hindi.

इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल  के पाठ 6 भू – आकृतिक प्रक्रियाएँ के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectGeography
Chapter no.Chapter 6
Chapter Nameभू – आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)
CategoryClass 11 Geography Important Questions in Hindi
MediumHindi
Class 11 Geography Chapter 6 भू – आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions in Hindi

Chapter – 6, भू – आकृतिक प्रक्रियाएँ

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. भू-आकृतिक प्रक्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करें ? 

उत्तर : धरातल के पदार्थों पर अंतर्जनित व बहिर्जनिक बलों के द्वारा भौतिक दबाव व रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल में परिवर्तन करने वाली क्रियाओं को भू-आकृतिक प्रक्रियाएं कहते हैं। 

प्रश्न 2. मृदा निर्माण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया बताओ? 

उत्तर : अपक्षय, मृदा निर्माण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। 

प्रश्न 3.विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले दो प्रमुख कारक कौन से हैं ?

उत्तर: तापमान व वर्षण दोनों ही भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। 

प्रश्न 4. बृहत संचलन के लिए कौन सी शक्ति सहायक होती है? 

उत्तर : गुरूत्वाकर्षण शक्ति संचलन में सहायक होती है। 

प्रश्न 5. निक्षेपण क्या है ?

उत्तर : निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है। जब ढाल में कमी आ जाती है तो अपरदित पदार्थ का निक्षेपण अर्थात् जमाव शुरू हो जाता है। 

प्रश्न 6. मृदा क्या है ? 

उत्तर : मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समूह है जिसमें जीव-जंतुओं तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती हैं।

प्रश्न 7. भू-आकृतिक कारक कौन से हैं ? 

उत्तर : प्रकृति के तत्व जो धरातल के पदार्थो का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम हैं जैसे हिम, जल, वायु आदि उन्हें भू-आकृतिक कारक कहते हैं। 

प्रश्न 8. पेडालॉजी विज्ञान किससे सम्बन्धित है ? 

उत्तर: पेडॉलाजी मृदा विज्ञान से संबंध रखता है। 

प्रश्न 9. बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा कहा से प्राप्त करती हैं ? 

उत्तर : बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं धरातल की ढाल प्रवणता से प्राप्त करती हैं।

प्रश्न 10.बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ पृथ्वी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न तरीकों से कार्य करती हैं। इसका क्या कारण है ? 

उत्तर : क्योंकि पृथ्वी पर पृथक-पृथक स्थानों पर तापमान तथा वर्षण की भिन्नता पाई जाती है। 

प्रश्न 11. अनाच्छादन क्या है ?

उत्तर : विभिन्न बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय, वृहतक्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि के कारण धरातल की चट्टानों का ऊपरी आवरण हट जाता है, इसे ही अनाच्छादन कहते हैं।

प्रश्न 12. अपक्षय किसे कहते हैं ?

उत्तर: अपक्षय उस यान्त्रिक, रासायनिक तथा जैविक प्रक्रिया को कहते हैं जिसके कारण शैलें एक ही स्थान पर टूटती-फूटती व अपघटित होती रहती हैं। 

प्रश्न 13. रसायनिक अपक्षय क्या है ?

उत्तर: रसायनिक अपक्षय को निम्न उदाहरणों के द्वारा समझा जा सकता है। नमक की एक डली को आर्द्र स्थान पर रखने से वह गल कर खत्म हो जाती है। लोहे को खुले में आर्द्र स्थान पर रखने से उसमें जंग लग जाता है। और  धीरे-धीरे नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाता है नमक का गलना एवं लोहे में जंग लगना रासायनिक क्रियाएँ हैं यही प्रक्रिया चटानों के साथ होती हैं तब इसे रासायनिक अपक्षय कहते हैं। 

प्रश्न 14. अपक्षय प्रक्रिया का महत्व क्या है ?

उत्तर: चट्टानें छोटे टुकड़ों में बंटकर मृदा के निर्माण में सहायक होती हैं | अपक्षय, चटटानों में मूल्यवान खनिजों जैसे लौहा, मैगनीज, तांबा आदि के संकेन्द्रण में सहायक है क्योंकि, अपक्षय के कारण अन्य पदार्थों का निक्षालन हो जाता है और वे स्थानान्तरित हो जाते है एवं खनिज एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं। 

प्रश्न 15. वृहत् संचलन क्या है ? 

उत्तर : शैलों का मलवा छोटे या बड़े रूप में गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के सहारे मंद या तीव्र गति से स्थानान्तरित होता है तो इसे वृहत संचलन कहते हैं। 

प्रश्न 16. अपरदन की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर : प्रवाहित जल, भौमजल, हिमानी, वायु, लहरों एवं धाराओं द्वारा शैलों को काटना, खुरचना एवं उससे प्राप्त मलवे या अवसदों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है। 

प्रश्न 17. तल संतुलन किसे कहते हैं ? 

उत्तर : प्रकृति ने धरातल पर कही ऊँचे पहाड़ और कहीं गहरी घाटियाँ बनाई हैं। अपरदन के विभिन्न कारकों के माध्यम से उच्चावच के इस अंतर को कम करने को तल संतुलन कहते हैं। 

प्रश्न 18. ‘कार्बोनेशन प्रक्रिया का वर्णन करें? 

उत्तर : यह एक प्रक्रिया है जिसमें कार्बोनेट तथा बाई कार्बोनेट का खनिजों से प्रतिक्रिया का प्रतिफल कार्बोनेशन कहलाता है। जल द्वारा वायुमंडल व मृदा से कार्बन डाईऑक्साईड अवशोषित की जाती है। इससे कार्बोनिक अम्ल निर्मित होता है, जो एक कम सक्रिय अम्ल के रूप में घुल जाते हैं तथा कोई अवशेष नहीं छोड़ते। इसके फलस्वरूप चुना पत्थर क्षेत्रों में भूमिगत गुफाओं का निर्माण होता है। 

प्रश्न 19. बैक्टीरियता वृद्धि धीमी होने की वजह से कौन सी मृदा संस्तर विकसित होता है? 

उत्तर : पीट।

लघु उत्तरीय व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. जैविक क्रियाएं किस प्रकार मृदा निर्माण में सहायक हैं ? 

उत्तर : जैविक क्रियाओं से उत्पन्न अपक्षय के द्वारा ही नयी सतहों का निर्माण होता है चीटी, दीमक, केंचुए, कृतक इत्यादि कीटों का मृदा निर्माण में अत्याधिक महत्व है। ये मृदा को बार-बार ऊपर नीचे करते रहते हैं। केंचुए रसायन मिट्टी का गठन करने में सहायक होते हैं। इन जीवों द्वारा बिल खोदने के कारण मृदा की सतहों में भी परिवर्तन होता है मृत पौधे व जडें मृदा को जैव पदार्थ ह्यूमस प्रदान करते है। जिनमें बैक्टीरिया अपना कार्य आरंभ कर देते हैं। 

प्रश्न 2.चट्टानों के अपक्षय की रासायनिक प्रक्रिया कितने प्रकार की होती है। समझाइये? 

उत्तर: रसायनिक अपक्षय निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है :

(1) विलयन (Solution) :- चट्टानों में मौजूद कई प्रकार के खनिज जल में घुल जाते हैं जैसे नाइट्रेट, सल्फेट एंव पौटेशियम। इस तरह अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में तथा आर्द्र जलवायु में ऐसे खनिजों से युक्त शैलें अपक्षयत हो जाती हैं। 

(2) कार्बोनेशन (Carbonation) :- वर्षा क जल में घुली हुई कार्बनडाईआक्साईड से कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है यह अम्ल चूना युक्त चट्टानों को घुला देता है। 

(3) जलयोजन (Hydration) :- कुछ चट्टानें जैसे कैल्शियम सल्फेट जल को सोख लेती हैं और फैल कर कमजोर हो जाती हैं तथा बाद में टूट जाती हैं। 

(4) आक्सीकरण (Oxidation &Reduction) :- लोहे पर जंग लगना आक्सीकरण का अच्छा उदाहरण है। चट्टानों के ऑक्सीजन गैस के सम्पर्क में आने से यह प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया वायुमंडल एवं ऑक्सीजन युक्त जल के मिलने से होती है। 

प्रश्न 3. भौतिक अपक्षय क्या है ? यह कितने प्रकार का होता है ? 

उत्तर : भौतिक अपक्षय के कारण चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों मे टूट जाती हैं जिनके लिये गुरूत्वाकर्षण बल, तापमान में परिवर्तन शुष्क एवं आर्द्र परिस्थितयों का अदल-बदल कर आना जैसे कारक जिम्मेदार हैं। ये निम्नप्रकार से होता है:

(1) भार विहीनीकरण (Unloading) 

(2) तापक्रम में परिवर्तन (Change in Temperature) 

(3) हिमकरण एवं तुषार वेडिंग (Freezing and FrostWending) 

(4) लवण अपक्षय (SaltWeathering)

(5) utfach 379814 (Biological Weathering) 

प्रश्न 4. अपक्षय की निम्नलिखित प्रक्रियाओं को सचित्र समझाइये।

1) अपशल्कन 

2) संकुचन एवं विस्तारण

3) हिमकरण व तुषार वेडिंग

उत्तर : 

(1) अपशल्कन (Exfoliation) :- अपक्षय की इस प्रक्रिया में चट्टानों की परतें प्याज के छिलके की तरह उतरती हैं। ऐसा गुबंद आकार की भू-आकृतियों में होता है। इनके ऊपर की परत अपरदन के कारण हट जाती है और परतदार पट्टियाँ विकसित हो जाती हैं। 

(2) संकुचन एंव विस्तारण (Shrink and Expansion) :- शैलों में मौजूद खनिज तापमान बढ़ने से फैलते हैं एवं तापमान कम होने से सिकुड़ते हैं इस प्रक्रिया से शैलें कमजोर होकर टूटती हैं। 

(3) हिमकरण व तुषार वेडिंग (Freezing and Frost Weding) :- शैलों की दरारों में जल भर जाता है एवं तापमान गिरने से जल हिम से परिवर्तित हो जाता है। हिम बनने से आयतन बढ़ता है जो शैलों पर दबाव डालता है। इस प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से शैले टूट जाती है। 

प्रश्न 5. तीव्र संचलन प्रक्रिया क्या है? यह कितने प्रकार से घटित होती है ? 

उत्तर : आर्द्र जलवायु में मंद या तीव्र वनस्पति विहीन ढालों पर जलयुक्त मिटटी अथवा गाद का तेजी से खिसकना तीव्र संचलन कहलाता है । यह प्रक्रिया कई तरीके की होती है:

(1) मृदा-प्रवाह(Earth Flow) :- जब संतृप्त चिकनी मिट्टी व गाद पहाड़ी ढालों के सहारे नीचे की ओर संचलन मृदा प्रवाह कहलाता है। सीढी बनाते हुए जब यह पदार्थ सांप की तरह नीचे खिसकता है तो यह अवसर्पण कहलाता है। 

(2 )कीचड़ प्रवाह (Mud Flow) :- बहुत अधिक मात्रा में अपक्षय होने से पदार्थ भारी वर्षा के कारण कीचड़ बन जाता है। और तेजी से कीचड़ की नदी के रूप में ढालों से घाटियों की और बहने लगता है यह घटना बहुत विनाशकारी सिद्ध होती है। 

(3) मलवा अवधाव(Avalanche) :- यह प्रक्रिया तीव्र ढालों पर हाती है जिससे मलवा (चट्टानों के टुकडे) कीचड़ प्रवाह से भी तेज गति से नीचे आता है।

प्रश्न 6. अपक्षय मृदा निर्माण को किस तरह प्रभावित करता है ? 

उत्तर : चट्टानों के अपक्षय से प्राप्त पदार्थ मृदा निर्माण के लिये आधार का कार्य करता है। इसमें पेड़ पौधे एवं जीव जन्तुओं के सड़े गले अंश होते हैं। जिन्हें ह्यूमस कहा जाता है। इस मिश्रण में रंध्रो में जीवन के लिए आवश्यक गैसें तथा जल में घुले हुए पोषक खनिज भी मिल जाते हैं। इस तरह लम्बी समयावधि में मृदा का अच्छा मिश्रण तैयार होता जाता है। 

प्रश्न 7. मृदा निर्माण में सहायक प्रमुख कारक कौन से हैं ? ये कारक किस तरह मृदा निर्माण में सहायक होते हैं ?

उत्तर: मृदा निर्माण निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है :

(1) जलवायु :- जलवायु मूल शैल के अपक्षय को प्रभावित करती है। अधिक वर्षा मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बढ़ाती है। लेकिन भारी वर्षा के कारण मिट्टी के उपजाऊ तत्वों को नुकसान भी पहुँचता है। 

(2) मूल पदार्थ :- जिस प्रकार चट्टानों का अपक्षय होता है मिट्टी का प्रकार भी वैसा होता है उदाहरणार्थ दक्षिण भारत की मिट्टी वहाँ की आधार शैलों के कारण काली है। 

(3) उच्चावच :- पहाडी भागों में मिट्टी की परत पतली होती है जबकि मैदानी भागों मे मिट्टी की परत की मोटाई अधिक होती है। 

(4) जैविक क्रियाएं :- वनस्पति आवरण एवं सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति मृदा को अधिक उपजाऊ बनाती है। 

(5) समय :- लम्बी कालावधि में बनी मिट्टी अधिक समृद्ध एवं उपजाऊ होती है।

प्रश्न 8. वे कौन से कारक है जो वृहत संचलन की सक्रियता को बढा देते है ? 

उत्तर : वृहत संचलन की सक्रियता के पीछे अनेक कारक कार्य करते हैं। जोकि इस प्रकार हैं – 

  • प्राकृतिक और कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थो के टिकने के आधार का हटाना। 
  • ढालों की प्रवणता और ऊँचाई में बढ़ोतरी । 
  • पदार्थों के प्राकृतिक या कृत्रिम भराव के कारण पैदा अतिभार । 
  • अत्यधिक वर्षा, संतृप्ति तथा ढाल से पदार्थो के स्नेहन द्वारा उत्पन्न अतिभार। 
  • मूल ढाल की सतह पर पदार्थ अथवा भार का हटना। 
  • भूकंप आना, 
  • विस्फोट अथवा मशीनों का कंपन। 
  • प्राकृतिक वनस्पति की अंधाधुंध कटाई। 

प्रश्न 9.बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न क्यों होती है। 

उत्तर : इसके निम्नलिखित कारण हैं

  • पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारक अलग-अलग जलवायु प्रदेश स्थित हैं। जोकि अंक्षाशीय, मौसमी तथा जल-थल विस्तार में भिन्नता के कारण पैदा हुए हैं। 
  • वनस्पति का घनत्व, प्रकार तथा वितरण जो विशेषतः वर्षा तथा तापक्रम पर निर्भर करता है, बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष असर डालता है। 
  • विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभिन्न जलवायविक तत्वों जैसे ऊंचाई में अन्तर सूर्यमुखी ढालों पर सूर्यविमुख ढालों की तुलना में ज्यादा सूर्यातप प्राप्ति के कारण स्थानीय भिन्नता का मिलना। 
  • वायु का वेग तथा दिशा, वर्षण की मात्रा एवं प्रकार, इसकी गहनता, वर्षण एवं वाष्पीकरण में संबंध, तापक्रम का स्तर दैनिक स्तर हिमकरण तथा पिघलन की आवृति, तुषार व्यापन की गहराई आदि में फर्क के कारण किसी भी जलवायिक प्रदेश के भीतर भू-आकृतिक प्रक्रियाएं अलग-अलग होती हैं। 
  • यदि जलवायविक कारक समान हो, तो बहिर्जनिक प्रक्रियाओं की गहनता शैलों के प्रकार तथा संरचना पर निर्भर करती है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की शैले अपनी संरचना में भिन्नता के कारण भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के प्रति भिन्न-भिन्न प्रतिरोध क्षमता पेश करती है। एक खास शैल एक प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोधपूर्ण तथा अन्य प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोधरहित हो सकती है। 

प्रश्न 10. अन्तर्जनित और बहिर्जनिक दोनो ही बल पृथ्वी निर्माण के समय से अपना कार्य बहुत ही अनुशासित तरीके से करते आ रहे हैं, किन्तु वर्तमान में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से इनकी गति में असामान्य वृद्धि हुई है क्यों ? 

उत्तर:

(1) अन्तर्जनित बल पृथ्वी पर उच्चावच सम्बन्धी विविधता उत्पन्न करते हैं जैसेः पर्वत, पठार, मैदान आदि भू-आकृतियों का निर्माण करना और बहिर्जनिक बल धरातल पर उत्पन्न इस भिन्नता को समान करते हैं, किंतु वर्तमान समय में मनुष्यों ने संसाधनों का अत्याधिक दोहन करना आरम्भ कर दिया है। परिणामस्वरूप-विश्व के अधिकांश भाग, बाढ़, भूकंप, चक्रवात आदि त्रासदियों से जुझ रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नही है। 

(2) उत्तराखण्ड (केदारनाथ में आई बाढ़ हो या कश्मीर में आई बाढ़ या नेपाल में आया भूकंप, इन सब के लिए सीधे तौर पर मनुष्य ही उत्तरदायी है। क्योंकि, धरातल के भाग को बनने में बहुत लम्बी अवधि सैंकड़ों-हजारों वर्षों का समय लगता है। 

(3) किन्तु, मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरूपयोग, कुप्रयोग के कारण संभाव्यता से अधिक तीव्रगति से ह्रास किया है। यदि उन प्रक्रियाओं जिन्होंने धरातल को रूप दिया है और अभी भी दे रही हैं उनसे साम्यता बना ली जाए तो निश्चित रूप से मानव द्वारा किये जा रहे हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

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