कबीर के पद Important Questions || Class 11 Hindi (Aroh) Chapter 11 in Hindi ||

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पाठ – 11

कबीर के पद

In this post we have mentioned all the important questions of class 11 Hindi (Aroh) chapter 11 कबीर के पद in Hindi

इस पोस्ट में कक्षा 11 के हिंदी (आरोह) के पाठ 11 कबीर के पद  के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

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BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
Subjectहिंदी (आरोह)
Chapter no.Chapter 11
Chapter Nameकबीर के पद
CategoryClass 11 Hindi (Aroh) Important Questions
MediumHindi
Class 11 Hindi (Aroh) Chapter 11 कबीर के पद Important Questions

Chapter 11 कबीर के पद

पद के साथ

प्रश्न 1: कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर- कबीर ने एक ही ईश्वर के समर्थन में अनेक तर्क दिए हैं, जो निम्नलिखित हैं

  • संसार में सब जगह एक ही पवन व जल है।
  • सभी में एक ही ईश्वरीय ज्योति है।
  • एक ही मिट्टी से सभी बर्तनों का निर्माण होता है।
  • एक ही परमात्मा का अस्तित्व सभी प्राणों में है।
  • प्रत्येक कण में ईश्वर है।
  • दुनिया के हर जीव में ईश्वर व्याप्त है।

प्रश्न 2: मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?

उत्तर- मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित पाँच तत्वों से हुआ है-

  • अग्नि
  • वायु
  • पानी
  • मिट्टी
  • आकाश

प्रश्न 3: जैसे बाढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न कार्ट कोई।

सब छटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपै सोई।

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की वृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ है कि बढ़ई काठ (लकड़ी) को काट सकता है, पर आग को नहीं काट सकता, इसी प्रकार ईश्वर घट-घट में व्याप्त है अर्थात् कबीर कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार आग को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता और न ही आरी से काटा जा सकता है, उसी प्रकार परमात्मा हम सभी के भीतर व्याप्त है। यहाँ कबीर का आध्यात्मिक पक्ष मुखर हो रहा है कि आत्मा (ईश्वर का रूप) अजर-अमर, सर्वव्यापक है। आत्मा को न मारा जा सकता है, न यह जन्म लेती है, इसे अग्नि जला नहीं सकती और पानी भिगो नहीं सकता। यह सर्वत्र व्याप्त है।

प्रश्न 4: कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

उत्तर- यहाँ ‘दीवाना’ का अर्थ है-पागल। कबीरदास ने परमात्मा का सच्चा रूप पा लिया है। वे उसकी भक्ति में लीन हैं, जबकि संसार बाहय आडंबरों में उलझकर ईश्वर को खोज रहा है। अत: कबीर की भक्ति आम विचारधारा से अलग है इसलिए वह स्वयं को दीवाना कहता है।

प्रश्न 5: कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?

उत्तर- कबीर संसार को सच्चाई (परम तत्व की सर्वव्यापकता) के विषय में बताते हैं तो संसारी लोग उन्हें मारने के लिए भागते हैं और झूठी बातों पर विश्वास करते हैं। संसार का यह व्यवहार कबीर को बड़ा ही अजीब लगता है। इसलिए वे कहते हैं कि संसार बौरा गया है।

प्रश्न 6: कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?

उत्तर- कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की निम्नलिखित कमियों की ओर संकेत किया है-

  • प्रात:काल स्नान करने वाले, पत्थरों, वृक्षों की पूजा करने वाले अंधविश्वासी हैं। वे धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं पहचान पाते तथा आत्मज्ञान से वंचित रहते हैं।
  • मुसलमान भी पीर-औलिया की बातों का अनुसरण करते हैं। वे मंत्र आदि लेने में विश्वास रखते हैं। ईश्वर सबके हृदय में विद्यमान है, परंतु ये उसे पहचान नहीं पाते।

प्रश्न 7: अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?

उत्तर- अज्ञानी गुरु स्वयं सन्मार्ग पर नहीं है तो वह शिष्य को क्या मार्ग दिखाएगा? भ्रमित और बायाडंबरों से पूर्ण गुरु के साथ रहनेवाले शिष्यों को मंज़िल नहीं मिलती। वे अज्ञानी गुरु समेत डूब जाते हैं और अंतकाल में पश्चाताप करते हैं जबकि उस समय वे अपना जीवन व्यर्थ गॅवा चुके होते हैं।

प्रश्न 8: बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- बाहय आडंबरों की अपेक्षा स्वयं को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है-

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आत्म खबरि न जाना।

इसका अर्थ यह है कि हिंदू-मुसलमान-दोनों धर्म के बाहरी स्वरूप में उलझे रहते हैं। कोई टोपी पहनता है तो कोई माला पहनता है। माथे पर तिलक व शरीर पर छापे लगाकर अहकार दिखाते हैं। वे साखी-सबद आदि गाकर अपने आत्मस्वरूप को भूल जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1: ‘हम तो एक एक करि जामा’ – पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर- इस पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हृदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है।

प्रश्न 2: ‘सतों देखो जग बौराना-पद का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर- इस पद में कबीर ने बाहय आडंबरों पर चोट की है। वे कहते हैं कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं। कबीरदास कहते हैं कि यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वास किया जाता है। हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप, तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर उनकी निंदा की गई है।

प्रश्न 3: ईश्वर के स्वरूप के विषय में कबीर क्या कहते हैं?

उत्तर- कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर एक है। और उसका कोई निश्चित रूप या आकार नहीं है। वह सर्वव्यापी है। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने कई तर्क दिए हैं; जैसे-संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकार का प्रकाश सबके अंदर समाया हुआ है। यहाँ तक कि एक ही प्रकार की मिट्टी से कुम्हार अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी को काटकर अलग कर सकता है परंतु आग को नहीं। यानी मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा) को छोड़कर शेष सबको काट कर आप अलग कर सकते हो। इसी तरह से शरीर नष्ट हो जाता है किंतु आत्मा सदैव बनी रहती। आत्मा परमात्मा का ही अंश है जो अलग-अलग रूपों में सबमें समाया हुआ है। अत: ईश्वर एक है उसके रूप अनेक हो सकते हैं।

प्रश्न 4: परमात्मा को पाने के लिए कबीर किन दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?

उत्तर- परमात्मा को पाने के लिए कबीर मोह, माया, अज्ञान, घमंड आदि से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे जीवन-यापन के भय से मुक्ति की चेतावनी भी देते हैं। क्योंकि मोह, माया, अज्ञान, घमंड तथा भय आदि परमात्मा को पाने में बाधक हैं। कबीर दास के अनुसार असली साधक में इन दुर्गुणों का समावेश नहीं होता है।

प्रश्न 5: कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या टिप्पणी करते हैं?

उत्तर- कबीर कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को कोई ज्ञान नहीं होता। वे घूम-घूमकर मंत्र देकर शिष्य बनाते हैं। ये शिष्यों से गलत कार्य करवाते हैं। यानी ये मानव समाज को अलग-अलग धार्मिक चौपालों के कट्टर प्रतिनिधि बनाकर समाज में धार्मिक भेद-भाव का वातावरण बनाते हैं। फलस्वरूप समाज में कटुता का भाव पैदा होता है। अत: ऐसे गुरुओं से हमें बचना चाहिए। नहीं तो अंतत: पछताना पड़ेगा।

प्रश्न 6: कबीर की दृष्टि में किन लोगों को आत्मबोध नहीं होता?

उत्तर- कबीर का मानना है कि वे लोग आत्मबोध नहीं पा सकते जो बाहय आडंबरों में उलझे रहते हैं। वे सत्य पर विश्वास न करके झूठ को सही मानते हैं। धर्म के ठेकेदार लोगों को पाखंड के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हैं, जबकि वे सभी गलत हैं। उनके तरीकों से अह भाव का उदय होता है; जबकि ईश्वर की प्राप्ति सहज भाव से प्राप्त की जा सकती है।

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