पाठ – 10
वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
In this post, we have mentioned all the important questions of class 11 Geography chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems in Hindi.
इस पोस्ट में क्लास 11 के भूगोल के पाठ 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ के सभी महतवपूर्ण प्रश्नो का वर्णन किया गया है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 11 में है एवं भूगोल विषय पढ़ रहे है।
Board | CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 10 |
Chapter Name | वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Weather Systems) |
Category | Class 11 Geography Important Questions in Hindi |
Medium | Hindi |
Chapter – 10, वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं ?
उत्तर : समुद्रतल से वायुमंडल की अंतिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु स्तंभ के भार को वायुमंडलीय दाब कहते हैं।
प्रश्न 2.वायु दाब किस यन्त्र से मापा जाता है और इसके मापन के लिये किस इकाई का प्रयोग होता है ?
उत्तर: पारद वायुदाबमापी या निर्द्रव बैरोमीटर। इकाई-मिलीबार या हैक्टोपास्कल है।
प्रश्न 3. वायुदाब की हास (कमी आना) दर क्या है ?
उत्तर : वायु दाब वायुमंडल के निचले हिस्से में अधिक तथा ऊँचाई बढ़ने के साथ तेजी से घटता है यह हास दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होता है।
प्रश्न 4. सम दाब रेखाओं Isobar को परिभाषित करें।
उत्तर : समुद्र तल से एक समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाते हुए खींची जाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएँ कहते हैं। ये समान अंतराल पर खीची जाती
प्रश्न 5. सम दाब रेखाओं का पास या दूर होना क्या प्रकट करता है ?
उत्तर : सम दाब रेखायें यदि पास-पास है तो दाब प्रवणता अधिक और दूर हैं तो दाब प्रवणता कम होती है।
प्रश्न 6. दाब प्रवणता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : एक स्थान से दूसरे स्थान पर दाब में अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं।
प्रश्न 7. स्थानीय पवनें किसे कहते हैं ?
उत्तर : तापमान की भिन्नता एंव मौसम सम्बन्धी अन्य कारकों के कारण किसी स्थान विशेष में पवनों का संचलन होता है जिन्हें स्थानीय पवनें कहते हैं।
प्रश्न 8. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को पश्चिमी आस्ट्रेलिया एवं पश्चिमी प्रशान्त महासागर में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर : उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को प. आस्ट्रेलिया में विली विलीज एवं पश्चिमी प्रशान्त महासागर में टाइफून के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 9. टारनैडो क्या है ?
उत्तर : मध्य अंक्षाशों में स्थानीय तूफान तंड़ित झंझा के साथ भयानक रूप ले लेते हैं। इसके केन्द्र में अत्यन्त कम वायु दाब होता है और वायु ऊपर से नीचे आक्रामक रूप से हाथी की सूंड़ की तरह आती है इस परिघटना को टारनैडो कहते हैं।
प्रश्न 10. अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिशरण क्षेत्र (ITC Z’ Inter Tropical Convergence Zone) प्रायः कहाँ होता हैं?
उत्तर : विषुवत वृत के निकट ।
प्रश्न 11. वायु राशि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: जब वायु किसी विस्तृत क्षेत्र पर पर्याप्त लम्बे समय तक रहती है तो उस क्षेत्र के गुणों (तापमान तथा आर्द्रता संबंधी) को धारण कर लेती है। तापमान तथा विशिष्ट गुणों वाली यह वायु, वायु राशि कहलाती है। ये सैंकड़ों किलोमीटर तक विस्तृत होती हैं तथा इनमें कई परतें होती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.कोरिऑलिस (Coriolis Force) प्रभाव किस प्रकार पवनों की दिशा को प्रभावित करता है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए?
उत्तर: पवन सदैव समदाब रेखाओं के आर-पार उच्च दाब से निम्न वायुदाब की ओर ही नहीं चलतीं। वे पृथ्वी के घूर्णन के कारण विक्षेपित भी हो जाती हैं। पवनों के इस विक्षेपण को ही कोरिऑलिस बल या प्रभाव कहते हैं।
- इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाई ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं।
- कोरिऑलिस बल का प्रभाव विषुवत वृत पर शून्य तथा ध्रुवों पर अधिकतम होता है।
- इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, अतः इसे फेरेल का नियम (Ferrel’s Law) कहते हैं।
प्रश्न 2. पवनों के प्रकारों का वर्णन कीजिए?
उत्तर : पवनें तीन प्रकार की होती हैं :
(1) भूमंण्डलीय पवनें (Planetary Winds) :- पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवनों को भूमण्डलीय पवनें कहते हैं। ये पवनें एक उच्चवायु दाब कटिबन्ध से दूसरे निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर नियमित रूप में चलती रहती हैं। ये मुख्यतः तीन प्रकार, की होती हैं- सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें तथा धवीय पवनें।
(2) सामयिक पवन (Seasonal Winds) :- ये वे पवनें हैं जो ऋतु या मौसम के अनुसार अपनी दिशा परिवर्तित करती हैं। उन्हें सामयिक – पवनें कहते हैं । मानसूनी पवनें इसका अच्छा उदाहरण हैं।
(3) स्थानीय पवनें (Local Winds) :- ये पवनें भूतल के गर्म व ठण्डा होने की भिन्नता से पैदा होती हैं। ये स्थानीय रूप से सीमित क्षेत्र को प्रभावित करती हैं | स्थल समीर व समुद्र समीर, लू, फोन, चिनूक, मिस्ट्रल आदि ऐसी ही स्थानीय पवनें है।
प्रश्न 3. मानसूनी पवनें किसे कहते हैं । इसकी तीन विशेषताएं बताइए?
उत्तर : मानसूनी शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ ऋतु है। अतः मानसूनी पवनें वे पवनें हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कल उलट जाती है। ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के छह माह में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु के छह माह में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इन पवनों को दो वर्गों, ग्रीष्मकालीन मानसून तथा शीतकालीन मानसून में बाँटा जाता है। ये पवनें भारतीय उपमहाद्वीप में चलती हैं।
प्रश्न4.स्थल-समीर व समुद्र-समीर में अन्तर स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर : स्थल समीर :- ये पवनें रात के समय स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। क्योंकि रात के समय स्थल शीघ्र ठण्डा होता है तथा समुद्र देर से ठण्डा होता है जिसके कारण समुद्र पर निम्न वायु दाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है।
समुद्र-समीर (Sea Breeze) :- ये पवनें दिन के समय समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं। क्योंकि – दिन के समय जब सूर्य चमकता है तो समुद्र की अपेक्षा स्थल शीघ्र गर्म हो जाता है। जिससे स्थल पर निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। ये पवनें आर्द्र होती हैं।
प्रश्न 5. पर्वत समीर व घाटी समीर में अंतर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर : घाटी समीर :- दिन के समय शांत स्वच्छ मौसम में वनस्पतिविहीन, सूर्यभिमुख, ढाल तेजी से गर्म हो जाते हैं और इनके संपर्क में आने वाली वायु भी गर्म होकर ऊपर उठ जाती है। इसका स्थान लेने के लिए घाटी से वायु ऊपर की ओर चल पड़ती है।
- दिन में दो बजे इनकी गति बहुत तेज होती है।
- कभी कभी इन पवनों के कारण बादल बन जाते हैं, और पर्वतीय ढालों पर वर्षा होने लगती है।
- पर्वत समीर :- रात के समय पर्वतीय ढालों की वायु पार्थिव विकिरण के कारण ठंडी और भारी होकर घाटी में नीचे उतरने लगती है।
- इससे घाटी का तापमान सूर्योदय के कुछ पहले तक काफी कम हो जाता है। जिससे तापमान का व्युत्क्रमण हो जाता है।
- सूर्योदय से कुछ पहले इनकी गति बहुत तेजी होती है। ये समीर शुष्क होती हैं।
प्रश्न 6. चक्रवात एवं प्रति चक्रवात में अन्तर बताइये।
उत्तर :
चक्रवात :- जब किसी क्षेत्र में निम्न वायु दाब स्थापित हो जाता है और उसके चारों ओर उच्च वायुदाब होता है तो पवनें निम्न दाब की ओर आकर्षित होती हैं एवं पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों के विपरित तथा द. गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप घूम कर चलती हैं।
प्रतिचक्रवात :- इस प्रणाली के केन्द्र में उच्च वायुदाब होता है। अतः केन्द्र से पवनें चारों ओर निम्न वायु दाब की ओर चलती हैं। इसमें पवनें उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप एंव द. गोलार्ध में प्रतिकूल दिशा में चलती हैं।
प्रश्न 7. वाताग्र किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर: जब दो भिन्न प्रकार की वायु राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। ये चार प्रकार के होते है –
(1) शीत वाताग्र
(2) उष्ण वाताग्र
(3) अचर वाताग्र
(4) अधिविष्ट वाताग्र
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.वायु दाब के क्षैतिज वितरण के विश्व प्रतिरूप का वर्णन कीजिए?
उत्तर: वायुमण्डलीय दाब के अक्षांशीय वितरण को वायुदाब का क्षैतिज वितरण कहते हैं। विभिन्न अक्षांशों पर तापमान में अन्तर तथा पृथ्वी के घूर्णन के प्रभाव से पृथ्वी पर वायु दाब के सात कटिबन्ध बनते हैं। जो इस प्रकार हैं :
1. विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध :
- इस कटिबंध का विस्तार 5° उत्तर और 5° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य हैं।
- इस कटिबंध में सूर्य की किरणें साल भर सीधी पड़ती हैं। अतः यहाँ की वायु हमेशा गर्म होकर ऊपर उठती रहती हैं।
- इस कटिबन्ध में पवनें नहीं चलतीं। केवल ऊर्ध्वाधर (लम्बवत्) संवहनीय वायुधाराएं ही ऊपर ही ओर उठती हैं। अतः यह कटिबंध पवन-विहीन शान्त प्रदेश बना रहता है। इसलिए इसे शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम कहते हैं।
2. उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबन्ध
- यह कटिबन्ध उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य फैला है।
- इस कटिबन्ध में वायु लगभग शांत एवं शुष्क होती है। आकाश स्वच्छ मेघ रहित होता है। संसार के सभी गरम मरूस्थल इसी कटिबन्ध में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं क्योंकि पवनों की दिशा भूमि से समुद्र की ओर (Off Shore) होती है। अतः ये पवनें शुष्क हाती हैं।
3. उपध्रुवीय निम्न वायु दाब कटिबन्ध
- इस कटिबन्ध का विस्तार उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्द्ध में 60° से 65° अंश अक्षाशों के मध्य है।
- इस कटिबन्ध में विशेष रूप से शीतऋतु में अवदाब (चक्रवात) आते हैं।
4. ध्रुवीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध
- इनका विस्तार उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों (90° उत्तर तथा दक्षिण ध्रुवों) के निकटवर्ती क्षेत्रों में है।
- तापमान यहाँ स्थायी रूप से बहुत कम रहता है। अतः धरातल सदैव हिमाच्छादित रहता है।
प्रश्न 2. भूमण्डलीय या प्रचलित पवनों का वर्णन कीजिए ?
उत्तर : वर्ष भर एक ही दिशा में बहने वाली पवनों को भूमण्डलीय पवनें कहते हैं। ये पवनें एक वायु उच्च दाब कटिबन्ध से दूसरे निम्न वायु दाब कटिबन्ध की ओर नियमित रूप से चला करती हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं:
(1) सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें
- उपोष्ण उच्च वायु दाब कटिबन्धों से भूमध्य रेखीय निम्नवायु दाब कटिबन्धों की ओर चलने वाली पवनों को सन्मार्गी पवनें कहते हैं।
- कोरिऑलिस बल के अनुसार ये अपने पथ से विक्षेपित होकर उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्व-दिशा में चलती हैं।
- व्यापारिक पवनों को अंग्रेजी में ट्रेड विंड्स कहते हैं। जर्मन भाषा में ट्रेड का अर्थ निश्चित मार्ग होता है।
- विषुवत वृत्त तक पहुँचते-पहुँचते ये जलवाष्प से संतृप्त हो जाती हैं तथा विषुवत वृत के निकट पूरे साल भारी वर्षा करती है।
(2) पछुआ पवनें
- उच्च वायु दाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायु दाब कटिबन्धों की ओर बहती हैं।
- दोनो गोलार्द्ध में इनका विस्तार 30° अंश से 60° अक्षांशों के मध्य होता है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से होती है।
- व्यापारिक पवनों की तरह ये पवनें शांत और दिशा की दृष्टि से नियमित नहीं हैं। इस कटिबन्ध में प्रायः चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात आते रहते हैं।
(3) ध्रुवीय पवनें
- ये पवनें ध्रुवीय उच्च वायु दाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर चलती हैं।
- इनका विस्तार दोनो गोलार्डों में 60° अक्षांशो और ध्रुवों के मध्य है।
- बर्फीले क्षेत्रों से आने के कारण ये पवनें अत्यन्त ठंडी और शुष्क होती हैं।
प्रश्न 3. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के विकास की अवस्थाओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए?
उत्तर : शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबन्ध में ही है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में शीतऋतु में आते हैं परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में जल भाग के अधिक होने के कारण लगभग सारा साल चलते रहते हैं। इनकी उत्त्पत्ति जे. बजर्कनीस के ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त के आधार पर समझी जा सकती है। इनकी उत्त्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं:
अवस्था क :- इस सिद्धान्त के अनुसार इनकी उत्त्पत्ति दो विभिन्न ताप तथा आर्द्रता वाली वायुराशियों के विपरीत दिशा से आकर मिलने से होती है। कोरिऑलिस बल के अधीन ये पवनें एक दूसरे के लगभग सामान्तर चलती हैं। इन दोनों वायुराशियों के बीच वाताग्र स्थित होता है।
अवस्था ख :- इस अवस्था में चक्रवात की बाल्यावस्था को दर्शाया गया है इस अवस्था में उष्ण वायु राशि वाताग्र को धकेलकर शीतल वायु राशि में प्रविष्ट होने का प्रयास करती है और शीतल वायु राशि भारी होने के कारण नीचे आने लगती है। इससे वाताग्र तरंग के रूप में परिवर्तित होने लगता है। अब वाताग्र को स्पष्ट रूप से उष्ण एंव शीत वातानों में बांटा जा सकता है। इन वातानों पर उष्ण तथा आर्द्र वायु ऊपर उठने को बाध्य हो जाती है, इसलिए आकाश प्रायः मेघाच्छादित हो जाता है और व वृष्टि होती है
अवस्था ग :- इस अवस्था में चक्रावात की प्रोढावस्था आरम्भ होती हैं। इस अवस्था में शीतल वायु तेजी से नीचे उतरकर उष्ण वायु को ऊपर धकेलती है जिससे उष्ण खण्ड का आकार छोटा हो जाता है।
अवस्था घ :- इस अवस्था में चक्रवात की प्रौढावस्था पूर्ण रूप से विकसित हो गई है। इसमें शीत वाताग्र की शीतल वायु को ऊष्ण वायु ऊपर की ओर धकेलती है जिससे उष्ण वायु केन्द्र में स्थापित हो जाती है परिणाम स्वरूप वहां निम्न वायु दाब केन्द्र विकसित होने लगता है और शीतल वायु तेजी से केन्द्र की ओर चलने लगती है।
अवस्था ड़ :- यह चक्रवात के समाप्त होने की पहली अवस्था है। शीतल वायु, उष्ण वायु को तब तक धकेलती रहती है जब तक उसका भू-पृष्ठ से सम्पर्क नहीं टूट जाता है।
अवस्था च :- इस अवस्था में चक्रवात पूरी तरह समाप्त हो चुका होता है।
प्रश्न 4. पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं? संक्षेप में बताओ।
उत्तर : तापमान व वायुमंडलीय दाब की भिन्नता के कारण वायु गतिमान होती है इस क्षैतिज गतिमान वायु को पवन कहते हैं। ये पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं –
- दाब प्रवणता (Pressure Gradient) :- वायुमंडलीय दाब जब कम दूरी पर परिवर्तित होता है तो पवनें तीव्र गति से चलती हैं।
- घर्षण बल (Frictional Forces) :- धरातल से एक से तीन किलोमीटर की ऊँचाई तक घर्षण बल पवनों के वेग को प्रभावित करता है।
- कोरिऑलिस बल (Coriolis Force) :- पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घूमती है इस कारण उत्तरी गोलार्ध में पवनें अपनी मूल दिशा से दायीं ओर एंव द. गोलार्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है यह विक्षेपण विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर बढ़ता जाता है। सन् 1884 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक डी. कोरियॉलिस ने इस का विवरण प्रस्तुत किया था।
प्रश्न 5. घोड़े का अक्षांश किसे कहते हैं।
उत्तर : मध्य अक्षांशों को 60-65° उत्तर अक्षांशों के बीच ।
प्रश्न 6. भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind) किसे कहते हैं।
उत्तर : जब समदाब रेखाएं सीधी हों ओर घर्षण का प्रभाव न हो तो दाव प्रवणता कोरिऑलिस प्रभाव से संतुलित हो जाता है फलस्वरूप पवनें सम दाब रेखाओं के समांतर बहती है। इन्हें भू-विक्षेपी पवनें कहते हैं।
प्रश्न 7.मिलान करो।
स्थानीय पवनें स्थान
1. लू (क) U.S.A., कनाडा
2. फोहन (ख) भारत
3. चिनूक (ग) आल्प्स
4. मिस्ट्रल (घ) फ्रांस
उत्तर : 1. ख 2. ग 3. क 4. घ
प्रश्न 8. ऊँचाई के साथ जल वाष्प की मात्रा क्यों तेजी से कम होने लगती है।
उत्तर : जल वाष्प वायुमंडल में विभिन्न मात्रा में पायी जाती है। यह स्थान और समय के अनुसार बदलती रहती है। ऊँचाई के साथ तापमान कम हो जाता है जिससे जल वाष्प की मात्रा भी कम हो जाता है।
प्रश्न 9. एल-निनो क्या है? दक्षिणी दोलन से इसका क्या संबंध है? विश्व की जलवायु पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : मध्य प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं, और पेरू की ठंडी धराओं का स्थान ले लेती हैं। पेरू के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनो कहलाता है।
एल-निनो घटना का मध्य प्रशांत महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा संबंध है। प्रशांत महासागर पर वायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है।
दक्षिणी दोलन तथा एल-निनो की संयुक्त घटना को ई.एन.एस. ओ. (ENSO) के नाम से जाना जाता है। जिन वर्षों में ENSO शक्तिशाली होता है, विश्व में वृहत् मौसम संबंधी भिन्नताएँ देखी जाती हैं, जैसे-दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी शुष्क तट पर भारी वर्षा होती है, आस्ट्रेलिया व कभी-कभी भारत अकालग्रस्त होते हैं तथा चीन में बाढ़ आती हैं
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